उम्रकैद की सजा काट रहे व्यक्ति को हाईकोर्ट ने किया बरी, बिना गलती के जेल में गुजर गए 20 साल

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कृष्ण को दोषमुक्त करार देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में संदेह से परे अपराध सिद्ध करने में असफल रहा है। यह फैसला जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की खंडपीठ द्वारा सुनाया गया।
2001 का है मामला
यह मामला वर्ष 2001 का है, जब बाला नामक महिला का शव 19 अगस्त को सोनीपत के बख्तावरपुर गांव में एक पेड़ से लटका हुआ पाया गया था। शुरुआत में इसे आत्महत्या का मामला माना गया, लेकिन चार दिन बाद बाला के भाई बिजेंद्र सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने कृष्ण और उसके परिवार के कुछ अन्य सदस्यों पर हत्या का आरोप लगाया।
उन्होंने आरोप लगाया कि बाला और कृष्ण के बीच कथित अवैध संबंधों के चलते यह हत्या की गई। शिकायत के आधार पर 23 अगस्त 2001 को मुरथल पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। दिसंबर 2001 में कृष्ण को गिरफ्तार किया गया और केवल उसी को आरोपित बनाकर हत्या के आरोप में अदालत में पेश किया गया, जबकि अन्य आरोपितों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई।अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को मजबूत करने के लिए एक कथित मौखिक स्वीकारोक्ति पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि कृष्ण ने फतेह सिंह नामक व्यक्ति के सामने हत्या की बात कबूल की थी। यह स्वीकारोक्ति राम सिंह की उपस्थिति में गांव में एक रिश्तेदार के बैठक कक्ष में हुई थी, उसी दिन जब बाला का शव मिला था।
19 अप्रैल 2005 को निचली अदालत ने कृष्ण को दोषी मानते हुए उसे उम्रकैद की सजा और 5,000 का जुर्माना सुनाया। कृष्ण ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया है, तथा अभियोजन पक्ष की कहानी में कई कमजोरियां हैं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था और ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं था, जिससे यह साबित किया जा सके कि अपराध कृष्ण ने ही किया है।
विशेष रूप से, जिस व्यक्ति के सामने कथित स्वीकारोक्ति की बात कही गई थी, वह फतेह सिंह, उसे अदालत में कभी पेश ही नहीं किया गया। अभियोजन का दावा था कि फतेह सिंह को पक्ष में कर लिया गया , लेकिन अदालत ने इस बात को खारिज करते हुए कहा कि उसकी गैर-हाजिरी से अभियोजन का पक्ष गंभीर रूप से कमजोर हुआ।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मौखिक स्वीकारोक्ति अपने आप में कमजोर साक्ष्य होती है और जब तक उसे मजबूत और ठोस सबूतों से समर्थन नहीं मिलता, तब तक उस पर आधारित होकर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती। इस प्रकार, लगभग 20 साल जेल में बिताने के बाद कृष्ण को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया गया।