हिन्दू पँचांग

🪷 हिन्दू पँचांग 🪷
*1 – 5 – 2025*
🪷 *विक्रम सम्वत~ 2082 (सिद्धार्थ)*
🪷 *दिन ~ गुरुवार*
🪷 *अयन ~ उत्तरायण*
🪷 *द्रिक ऋतु ~ ग्रीष्म*
🪷 *कलयुग ~ 5125 साल*
🪷 *सूर्योदय~ 05:40* (*दिल्ली*)
🪷 *सूर्यास्त ~ 18:56*
🪷 *चन्द्रोदय ~ 07:23*
🪷 *चन्द्रास्त ~ 22:18*
🪷 *तिथि~ चतुर्थी*
🪷 *नक्षत्र ~ मृगशिरा*
🪷 *चंद्र राशि ~ मिथुन*
🪷 *पक्ष ~ शुक्ल पक्ष*
🪷 *मास ~ वैशाख*
🪷 *करण ~*
*विष्टि~ 11:23 तक।*
*बव ~ 22:13*
🪷 *अभिजीत मुहुर्त ~*
*11:52 – 12:45*
🪷 *राहु काल ~*
*13:58 – 15:37*
🪷 *गण्डमूल ~ ×*
🪷 *पंचक~ ×*
🪷 *दिशा शूल ~ दक्षिण*
🪷 *योग ~*
*अतिगण्ड : ( 08:34 तक) इस योग को बड़ा दुखद माना गया है। इस योग में किए गए कार्य दुखदायक होते हैं। इस योग में किए गए कार्य से धोखा, निराशा और अवसाद का ही जन्म होता है। अत: इस योग में कोई भी शुभ या मंगल कार्य नहीं करना चाहिए और ना ही कोई नया कार्य आरंभ करना चाहिए।*
🪷 *सुकर्मा योग : जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि इस योग में कोई शुभ कार्य करना चाहिए। मान्यता अनुसार इस योग में नई नौकरी ज्वाइन करें या घर में कोई धार्मिक कार्य का आयोजन करें। इस योग में किए गए कार्यों में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है और कार्य शुभफलदायक होता है। ईश्वर का नाम लेने या सत्कर्म करने के लिए यह योग अति उत्तम है।*
🪷 *यात्रा ~*
*गुरुवार*
*दही या उससे बने पदार्थ या मिठाई खाकर या राई चबाकर यात्रा करने से अनुकूलता आती है।*
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*श्रीराधा दामोदर मंदिर वृंदावन*
🪷 *प्राचीन श्रीराधा दामोदर मंदिर वृंदावन में स्थित है।*
*इसकी चार परिक्रमाएँ करने से गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा का फल मिलता है।*
🪷 *साढ़े चार सौ वर्ष पुराने इस मंदिर की परिक्रमा करने से उसमें विराजमान गिरिराज शिला की स्वतः परिक्रमा हो जाती है।*
🪷 *इसकी एक किलोमीटर से भी कम की चार परिक्रमाएँ करने से श्रृद्धालु गिरिराज गोवर्धन की सात कोस (25 किलोमीटर) लम्बी परिक्रमा का पुण्य अर्जित कर लेता है।*
🪷 *किवदंती है कि सनातन गोस्वामी नित्य गिरिराज की परिक्रमा करते थे। वृद्धावस्था में उनकी असमर्थता को देखकर भगवान ने बालक रूप में प्रकट होकर उन्हें डेढ़ हाथ लंबी वट पत्राकार श्याम रंग की गिरिराज शिला दी। उस पर भगवान के चरण चिन्ह के साथ ही गाय के खुर का भी चिन्ह है। भगवान ने गोस्वामीजी को आदेश दिया कि अब वह वृद्धावस्था में गिरिराज पर्वत की बजाय इसी शिला की परिक्रमा कर लिया करें। उनके शरीर त्यागने के बाद शिला इसी मंदिर में स्थापित कर दी गई और तब से श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर की चार परिक्रमाएं लगाए जाने की परंपरा चल पड़ी।*
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