गजब! फर्जी यूनिवर्सिटियों से PHD की डिग्री लेकर कॉलेजों में बन गए प्रोफेसर; अब सरकार ने जांच के दिए आदेश

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राजकीय महाविद्यालयों में तैनात 117 प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक और सहयोगी प्राध्यापक सरकार के निशाने पर हैं। उन्होंने सेवा में रहते हुए निजी विश्वविद्यालयों से पीएचडी की डिग्री ली है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानकों पर ये डिग्रियां खरी नहीं उतर रहीं।
इन डिग्रियों के फर्जी होने की आशंका के चलते जहां सर्टिफिकेट की प्रामाणिकता की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) कर रहा है, वहीं मामले में हाईकोर्ट की सख्ती के बाद उच्चतर शिक्षा विभाग ने भी दस्तावेजों की जांच के लिए नई कमेटी गठित कर दी है। साथ ही संबंधित प्राध्यापकों की पदोन्नति पर भी रोक लगा दी है।
हालांकि, प्राध्यापकों का एक वर्ग डिग्रियों की किसी तटस्थ केंद्रीय जांच एजेंसी से जांच कराने की मांग कर रहा है, ताकि असलियत सामने आ सके। पहले चरण में आठ से 10 जनवरी तक दस्तावेजों की जांच कर चुकी उच्चतर शिक्षा विभाग की कमेटी ने बुधवार को फिर से रिकॉर्ड जांचने का काम शुरू कर दिया।
संबंधित प्राध्यापकों को पीएचडी के कोर्स वर्क सर्टिफिकेट, लीव रिकॉर्ड व संबंधित विवि के पीएचडी आर्डिनेंस सहित अन्य रिकार्ड के साथ बुलाया गया है। 16, 17, 20 और 21 जनवरी को भी जांच का काम चलेगा। 22 जनवरी को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है, जिसमें सरकार को बताना होगा कि एसीबी को कब जांच सौंपी गई और उसकी रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई।

साथ ही विभागीय जांच समिति की रिपोर्ट भी कोर्ट में रखी जाएगी। नौ दिसंबर को हुई पिछली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से पेश हुए उच्चतर शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विनीत गर्ग और निदेशक राहुल हुड्डा को शपथपत्र पेश नहीं कर पाने के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। यही वजह है कि अगली सुनवाई से पहले विभाग की ओर से मामले में गंभीरता से जांच की जा रही है, ताकि सटीक रिपोर्ट अदालत में रखी जा सके।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, कॉलेज में लगे प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक और सहयोगी प्राध्यापकों को पदोन्नति के लिए पीएचडी की डिग्री जरूरी है। ऐसे में बड़ी संख्या में स्थाई प्राध्यापकों के साथ ही अनुबंध पर लगे प्राध्यापक भी निजी विश्वविद्यालयों से पीएचडी की डिग्री ले आए।

पहले चरण में 2200 एक्सटेंशन लेक्चरर की जांच हो चुकी है, जिसके बाद फर्जी डिग्री वाले कई अनुबंधित प्राध्यापकों की छुट्टी हो चुकी है। अब दूसरे चरण में नियमित प्राध्यापकों के दस्तावेजों की जांच की जा रही है। जांच पूरी होने तक इन प्राध्यापकों को सीनियर स्केल, सेलेक्शन ग्रेड, पे बैंड 4, प्रोफेसर ग्रेड व पीएचडी इंक्रीमेंट का लाभ नहीं मिल पाएगा।

प्रदेश में बड़ी संख्या में एक्सटेंशन लेक्चरर कॉलेजों में तैनात हैं, जिन्होंने फर्जी निजी विश्वविद्यालयों से स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री ली हुई है। 57 हजार 700 रुपये के ग्रेड पर लगे इन एक्सटेंशन लेक्चरर की सेवाएं सरकार द्वारा हाल ही में 58 साल तक सुरक्षित कर दी गई हैं।

आरोप है कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच कालेजों में लगाए गए कई गेस्ट लेक्चरर निर्धारित योग्यता पूरी ही नहीं करते थे, लेकिन उन्हें भी वर्ष 2014 की पॉलिसी में पक्का कर दिया गया। इनके पास डिग्री किसी विषय की थी और पढ़ा कुछ और विषय रहे थे।

हालांकि, हाईकोर्ट की जस्टिस जिंदल की बेंच ने इस नियमितीकरण को बैक डोर एंट्री करार देते हुए निरस्त कर दिया था, लेकिन मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पिछले दिनों सरकार ने 2014 की पॉलिसी के तहत लगे हुए अन्य कर्मचारियों के साथ इन प्रोफेसर को भी सशर्त देने का आदेश जारी कर दिया है।

जिन निजी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों की जांच की जा रही है, उनसे डिग्री लेने वाले कई प्रोफेसर उच्चतर शिक्षा विभाग के मुख्यालय में अहम पदों पर बैठे हैं। ये प्राध्यापक इन विश्वविद्यालय से डिग्री लेने वाले अन्य शिक्षकों के गाइड भी हैं।

इससे निदेशालय द्वारा की जाने वाली जांच को लेकर प्राध्यापक सवाल उठा रहे हैं। इनका मानना है कि पूरे मामले की जांच सीबीआई जैसी किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए, तो ही सही तस्वीर सामने आ सकेगी।

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