सेक्टर-39 मंडी चंडीगढ़: करोड़ों की लागत से बनी मंडी उद्घाटन से पहले ही जर्जर, प्रशासन की नाकामी उजागर

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सेक्टर-39 मंडी चंडीगढ़: करोड़ों की लागत से बनी मंडी उद्घाटन से पहले ही जर्जर, प्रशासन की नाकामी उजागर

चंडीगढ़, 08 जून 2025। चंडीगढ़ प्रशासन की ‘महत्वाकांक्षी’ कहे जाने वाली परियोजनाओं में से एक, सेक्टर-39 की नई फल, सब्जी और अनाज मंडी आज खुद अपनी बदहाली की तस्वीर बन चुकी है। करोड़ों रुपये खर्च कर बनाई गई इस मंडी का उद्घाटन आज तक नहीं हुआ, लेकिन इसके शेड, बोर्ड और ढांचा पहले ही खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। यह हाल न सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी को दर्शाता है, बल्कि प्रशासन की अनदेखी और नाकामी का जीवंत प्रमाण भी है।

40 साल में 40 कदम भी नहीं चली सेक्टर-39 की मंडी

1990: करीब 75 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी नई मंडी के लिए।

2002: भूमि को मंडी के लिए आधिकारिक रूप से आवंटित किया गया।

सितंबर 2015: मंडी का शिलान्यास किया गया, मार्च 2016 तक निर्माण पूरा करने का लक्ष्य तय।

2017: निर्माण कार्य फिर भी अधूरा ही रहा।

लगभग चार दशक बीत गए, इस दौरान दर्जनों प्रशासक, सलाहकार और अधिकारी बदले, लेकिन मंडी की स्थिति नहीं बदली।

जमीनी हालात: कबाड़घर में तब्दील मंडी परिसर

जब हमारी टीम ने सेक्टर-39 मंडी का दौरा किया तो नज़ारा चौंकाने वाला था:

शेडों पर जंग की मोटी परत।

लोहे की संरचनाएं सड़ चुकी हैं, छतों में दरारें और दीवारें टूट चुकी हैं।

झाड़ियाँ, गंदगी और फैला हुआ कूड़ा मंडी की पहचान बन चुका है।

जगह-जगह टूटे हुए बोर्ड, उखड़े खंभे और बिजली की लटकती तारें मंडी की दुर्दशा बयां कर रही हैं।

असामाजिक तत्वों का अड्डा बनी मंडी

जहां कभी किसानों और व्यापारियों की चहल-पहल होनी चाहिए थी, वहां अब:

नशेड़ी और असामाजिक तत्व डेरा जमाए बैठे हैं।

मंडी परिसर में सुरक्षा का कोई नामोनिशान नहीं।

दीवारें टूटी हुई, बिजली के पोल झुके हुए और साज-सज्जा ध्वस्त।

स्थानीय लोगों और व्यापारियों की प्रमुख माँगें

मंडी को तत्काल शुरू किया जाए।

असामाजिक तत्वों को हटाने के लिए सुरक्षा गार्डों की तैनाती हो।

परिसर की सफाई और मरम्मत हो।

सेक्टर-26 की मंडी को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया पूरी की जाए।

जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।

प्रशासन से बड़े सवाल

करोड़ों रुपये खर्च कर बनी मंडी की यह स्थिति क्यों है?

क्या यह प्रोजेक्ट सिर्फ फाइलों और उद्घोषणाओं तक ही सीमित था?

इतने वर्षों में कोई स्थायी नीति क्यों नहीं बनी?

जिम्मेदार अधिकारी आज तक बेखौफ क्यों हैं?

और किस साल तक किसान-व्यापारी यहां आ पाएंगे?

सेक्टर-39 की मंडी न केवल प्रशासनिक सुस्ती का प्रतीक है, बल्कि यह बताती है कि किस तरह जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद हो रहा है। अगर अभी भी इस मंडी को पुनर्जीवित करने की ओर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह स्थान भूतपूर्व सरकारी नाकामियों की विरासत बनकर रह जाएगा।

अब देखना यह है कि चंडीगढ़ प्रशासन इस करोड़ों की परियोजना को लेकर आखिर कब जागेगा और इस मंडी को किसान-व्यापारी हित में चालू करेगा। या फिर यह मंडी ऐसे ही जंग खाती और धूल फांकती रहेगी?

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