दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में भारत कैसे, इससे नुकसान क्या है

पूरी दुनिया में इस समय जलवायु परिवर्तन को लेकर सबसे ज्यादा चिंता कार्बन उत्सर्जन को कम से कम करने की है. लेकिन चिंता की बात ये भी है कि जो तीन देश वर्ल्ड में सबसे ज्यादा ये काम कर रहे हैं, उसमें चीन और अमेरिका के बाद भारत भी है. जाहिर सी बात है कि दुनिया में इसे कम करने का कम हो रहा है.
सबसे पहले देख लेते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश कौन से हैं और वो कितनी मात्रा का उत्सर्जन कर रहे हैं. ये वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार है. साथ ही इनके साथ दिया हुआ डेटा मिलियन टन CO₂ प्रति वर्ष (MtCO₂/yr) में है. इसे Global Carbon Project, IEA, और EDGAR जैसे स्रोतों से लिया गया है.
चीन – दुनिया के कुल CO₂ उत्सर्जन का 30%. इसकी वजह उसकी कोयले पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता है लेकिन वो सौर और हवा से पैदा होने वाली एनर्जी में निवेश कर रहा है. वह 2060 तक “कार्बन न्यूट्रैलिटी” का लक्ष्य रखता है. 12,400 MtCO₂ कॉर्बन उत्सर्जन. कोयला: 55%. तेल: 20%. गैस: 10%.
अमेरिका – 14% वैश्विक उत्सर्जन. अब वह प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है. इस पर वहां तेजी से काम हो रहा है. हालांकि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद इस काम को झटका भी लग सकता है. 5,100 MtCO₂ (14%). तेल: 45%. गैस: 33%. कोयला: 12%.
भारत – 7%. भारत की निर्भरता भी कोयले पर ज्यादा है, जिसे वह नवीकरणीय ऊर्जा से दूर करने में लगा है. उसका नेट जीरो तक पहुंचने का प्लान वर्ष 2070 तक है. 3,400 MtCO₂ . कोयला: 70% . तेल: 25%.
रूस – 5%. रूस प्राकृतिक गैस निर्यात पर फोकस, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा में उसकी प्रगति वैसी नहीं है बल्कि इसे धीमा कहना चाहिए.
जापान – 3%. कॉर्बन उत्सर्जन कम करने के लिए जापान परमाणु ऊर्जा को फिर से बढ़ावा दे रहा है. हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी में निवेश में निवेश कर रहा है.
क्या हैं कार्बन उत्सर्जन कम करने के उपाय
नवीकरणीय ऊर्जा यानि सौर, पवन, जलविद्युत की ओर बढ़त.
कार्बन प्राइसिंग – यूरोप जैसे क्षेत्रों में कार्बन टैक्स या कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम शुरू हो चुका है
ईवी अपनाना – इलेक्ट्रिक वाहनों को सब्सिडी (जैसे नॉर्वे में 90% नई कारें ईवी)
ऊर्जा दक्षता – ऐसी इमारतें बनाई जा रही हैं. ऐसे उद्योग लगाए जा रहे हैं, जो ऊर्जा बचत तकनीक से लैस हैं.
जलवायु पर क्या प्रभाव
– ग्लोबल वार्मिंग – ये शब्द पिछले कई सालों से हम बहुत सुन रहे हैं और बात सही है कि CO₂ और अन्य ग्रीनहाउस गैसों से धरती का तापमान बढ़ रहा है. (पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.2°C अधिक).
– इसी वजह से चरम मौसमी घटनाएं भी बढ़ रही हैं, यानि बाढ़, सूखा, तूफान (ये दुनिया में जगह जगह हो रहा है)
– समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं, इससे तटीय शहरों को खतरा. माना जा रहा है कि अगर यही रफ्तार बनी रही तो भविष्य में बांग्लादेश औऱ मालदीव जैसे देशों के बहुत से तटीय शहर गायब हो जाएंगे.
– जैव विविधता को नुकसान हो रहा है.
प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (2023)
सऊदी अरब – 18 टन/व्यक्ति
अमेरिका – 15 टन/व्यक्ति
रूस – 12 टन/व्यक्ति
जर्मनी – 9 टन/व्यक्ति
चीन – 8.5 टन/व्यक्ति
भारत – 2.4 टन/व्यक्ति
उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत (देशों के अनुसार)
चीन/भारत – बिजली उत्पादन (कोयला), उद्योग, निर्माण.
अमेरिका/यूरोप – परिवहन (तेल), घरेलू ऊर्जा.
रूस/सऊदी अरब – जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण और निर्यात.
ग्रीनहाउस उत्सर्जन क्या होता है?
ग्रीनहाउस गैसें (GHG) वे गैसें हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी को रोककर “ग्रीनहाउस प्रभाव” पैदा करती हैं.
कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) – ये गैसें जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोल, डीजल) जलाने से निकलता है.
मीथेन (CH₄) – कृषि, पशुपालन और लैंडफिल से निकलता है.
नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) – उर्वरकों और औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकलता है.
फ्लोरिनेटेड गैसें (HFCs, PFCs, SF₆) – ये रेफ्रिजरेशन और औद्योगिक उपयोग से निकलती हैं.
कार्बन उत्सर्जन क्या है?
कार्बन उत्सर्जन मुख्य रूप से CO₂ के उत्सर्जन को कहते हैं, जो मानवीय गतिविधियों (जैसे जीवाश्म ईंधन जलाना, वनों की कटाई) से बढ़ता है. यह ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा हिस्सा है (लगभग 75% GHG उत्सर्जन CO₂ होता है).
इनका असर क्या होता है
दोनों के उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, समुद्र स्तर वृद्धि और चरम मौसमी घटनाएं बढ़ती हैं.