हरियाणा ने छीन ली कांग्रेस की पावर! सहयोगियों ने उठाए सवाल, महाराष्ट्र-झारखंड में दिखेगा असर

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हरियाणा में कांग्रेस की हार ने पार्टी के हाथों से एक बड़ी शक्ति छीन ली है। इंडिया गठबंधन में सहयोगियों ने कांग्रेस की रणनीति और क्षमता पर सवाल उठा दिए हैं। जम्मू-कश्मीर के साथ हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहा है। जम्मू और कश्मीर के नतीजे को देखें तो साफ है कि कांग्रेस को राज्य की राजनीति में लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन हरियाणा ने यह दिखाया है कि पार्टी बीजेपी के सामने सीधी लड़ाई में हार जाती है।

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की हार का असर आने वाले विधानसभा चुनावों में भी दिखेगा। महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में कांग्रेस को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। सहयोगियों के साथ मोलभाव कठिन हो सकता है। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस नेशनल कॉन्फ्रेंस की जूनियर पार्टनर बनकर चुनाव लड़ी। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 51 में से 42 सीटों पर जीत हासिल की है। कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 6 सीटें जीत पाई है।

हरियाणा में कांग्रेस को बीजेपी से सीधी लड़ाई में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद करारी मात मिली है। पार्टी मध्य प्रदेश में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर को नहीं भुना पाई तो हरियाणा में पार्टी 10 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद नहीं जीत पाई।

हरियाणा की हार के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस को अपनी स्ट्रैटजी पर फिर से सोचने की जरूरत है। बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में पार्टी कमजोर पड़ जाती है। ऐसा क्यों होता है। पूरे गठबंधन पर फिर से काम करने की जरूरत है। महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस की सहयोगी पार्टनर है। लोकसभा चुनावों में 99 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस इंडिया ब्लॉक में खुद को बड़े भाई के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगी थी। हरियाणा से उसका ये भ्रम टूटेगा।

वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 अक्टूबर को चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस का सीधे तौर पर जिक्र किए बिना कहा कि किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। केजरीवाल ने एमसीडी पार्षदों को संबोधित करते हुए कहा कि हरियाणा का चुनावी परिणाम देखिए। वहां क्या हुआ है। इस परिणाम का सबसे बड़ा सबक ये है कि किसी को भी अति आत्म विश्वास का शिकार नहीं होना चाहिए।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में थे, लेकिन स्थानीय नेताओं ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध किया। नतीजा ये हुआ कि गठबंधन हुआ ही नहीं।

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