महिलाएं अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं, हाईकोर्ट ने इस मामले पर की ये टिप्पणी

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केरल उच्च न्यायालय ने तलाक के एक मामले में पारिवारिक अदालत के आदेश की ‘पितृसत्तात्मक’ टिप्पणियों की मौखिक आलोचना करते हुए कहा कि ‘महिलाएं अपनी मां और सास की गुलाम नहीं हैं.’

न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा कि पारिवारिक अदालत का आदेश बहुत समस्याग्रस्त और पितृसत्तात्मक था. पति के वकील ने बताया कि त्रिशूर परिवार अदालत के आदेश में पत्नी को इस मुद्दे पर उसकी मां और सास की बात सुनने के लिए कहा गया था. इस पर गंभीरता से विचार करते हुए हाई कोर्ट ने जवाब दिया कि किसी महिला के फैसले को उसकी मां या उसकी सास के फैसले से कमतर नहीं माना जा सकता.

न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा, “महिलाएं अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं.” न्यायाधीश ने पति के वकील की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि मौजूदा विवाद आसानी से हल किए जा सकते हैं और इन्हें अदालत के बाहर भी सुलझाया जा सकता है.

न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अदालत के बाहर समझौते का निर्देश केवल तभी दे सकते हैं जब महिला भी ऐसा करने को तैयार हो. जज ने कहा  “महिला का अपना एक दिमाग है. क्या आप उसे बांधेंगे और मध्यस्थता के लिए दबाव डालेंगे? यही कारण है कि वह आपको छोड़ने के लिए मजबूर हुई. अच्छा व्यवहार करो, एक इंसान बनो.’

 

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