कांग्रेस का किला बचाना चुनौती तो है साथ ही चौधरी खानदान की सियासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी भी कंधों पर है
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आरक्षित जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 42 फीसदी मत दलित समाज के हैं। उनमें भी बहुसंख्यक वोट रविदासिया समाज के हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें चार विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। चारों सीटों पर हार-जीत का फैसला रविदासिया वोट बैंक करता है।
जालंधर लोकसभा उपचुनाव की उलटी गिनती चल रही है और धीरे-धीरे तस्वीर साफ हो रही है। मौजूदा समीकरण में लोकसभा उपचुनाव में चार उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर होने की संभावना बन रही है। हर पार्टी अपनी अपनी रणनीति तैयार कर शह और मात का खेल खेलने की तैयारी कर रही है। जालंधर लोकसभा सीट रिजर्व है और बहुसंख्यक वोटर दलित हैं। इनमें अधिकतर रविदासिया व मजहबी सिख हैं। लिहाजा, जीत हार के लिए दलित वोट ही निर्याणक होंगे।
लोकसभा सीट एक नजर
आरक्षित जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 42 फीसदी मत दलित समाज के हैं। उनमें भी बहुसंख्यक वोट रविदासिया समाज के हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें चार विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। चारों सीटों पर हार-जीत का फैसला रविदासिया वोट बैंक करता है। रविदासिया समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल डेरा सचखंड बल्लां जालंधर में ही है और इसके श्रद्धालुओं की तादाद लाखों में है। रविदासिया समुदाय के निर्णायक वोट ने संतोख सिंह चौधरी को लगातार दो बार सांसद बनाया।
कांग्रेस की तरफ से करमजीत कौर मैदान में, पार्टी का वोट बचाना चुनौती
दोआबा की दलित सियासत के गढ़ माने जाते जालंधर में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में 13 बार कांग्रेस को जीत हासिल हो चुकी है। बीते चार चुनाव से कांग्रेस ही इस सीट पर जीतती रही है। यह सीट दो बार शिरोमणि अकाली दल और दो बार ही जनता दल की झोली में भी जा चुकी है। कांग्रेस उम्मीदवार करमजीत कौर के पति चौ. संतोख सिंह लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। संतोख चौधरी का निधन भारत जोड़ो यात्रा में हुआ था, लिहाजा कांग्रेस को सहानूभूति वोट की पूर्ण आशा है। कांग्रेस का किला बचाना चुनौती तो है साथ ही चौधरी खानदान की सियासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी भी कंधों पर है। कर्मजीत कौर चौधरी के ससुर मास्टर गुरबंता सिंह आजादी से पहले से सियासत में थे और पंजाब के मंत्री रह चुके हैं। परिवार का कांग्रेस का इतिहास 100 साल पुराना है।
आप के लिए सरकार की परीक्षा
संगरूर के बाद जालंधर लोकसभा उपचुनाव 92 विधानसभा सीटें जीतकर सत्ता में आई आप के लिए एक और परीक्षा होगी। जालंधर दिलचस्प मुकाबला होने की संभावना है, क्योंकि पिछले साल के विधानसभा चुनावों रुझानों के अनुसार, जालंधर निर्वाचन क्षेत्र (आरक्षित) कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ बना हुआ है। 2019 के आम चुनाव में उसकी करारी हार हुई थी। पार्टी के उम्मीदवार जस्टिस जोरा सिंह (जिन्होंने बेअदबी की घटनाओं की जांच की थी) को सिर्फ 25 हजार वोट (कुल मतों का 2.5 प्रतिशत) मिले। हालांकि, आप ने 2014 में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था, जब उसके उम्मीदवार ज्योति मान को 2.54 लाख वोट मिले थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में, आप जालंधर में कांग्रेस के गढ़ को नहीं तोड़ सकी क्योंकि बाद में जालंधर लोकसभा में आने वाले नौ में से पांच क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। इस बार आप ने कांग्रेस से आए सुशील रिंकू को वोट दिया है।
भाजपा ने इंदर इकबाल को उतारा
पूर्व विधायक इंदर इकबाल सिंह अकाली नेता चरणजीत सिंह अटवाल के बेटे हैं। इंदर इकबाल ने 2002 में कूमकलां सीट से विधानसभा चुनाव जीता था। हालांकि वह 2007 और 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में हार गए थे। इंदर इकबाल वाल्मीकि मजहबी सिख परिवार हैं, उनके जरिए बीजेपी ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी कर रही है। इंदर के पिता चरणजीत अटवाल 2004 से 2009 तक लोकसभा के डिप्टी स्पीकर रहे और 2 बार पंजाब विधानसभा के स्पीकर रहे। जालंधर के 954 गांवों में महजबी सिखों का खासा वोट बैंक हैं। भाजपा इन गांवों में जमीनी आधार नहीं बना पाई है लिहाजा इंदर अटवाल के जरिए पार्टी गांवों में जाने का रास्ता खुल गया है। दूसरा, अटवाल पगड़ीधारी सिख हैं जिससे पार्टी को उम्मीद है कि सिख वोट भी उनकी तरफ आ सकता है।
शिअद-बसपा की तरफ से डॉ. सुक्खी, दलित वोटों पर नजर
शिरोमणि अकाली दल ने डॉ. सुखविंदर सुक्खी को बतौर उम्मीदवार उतारा है। अकाली दल हमेशा पंथक वोट पर आधारित रहा है। 1997 के बाद यह पहली बार होगा कि शिरोमणि अकाली दल का भाजपा से गठबंधन नहीं है और इस बार बसपा से गठबंधन कर वह मैदान में है। 2017 में भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल के हिस्से 25.2 फीसदी वोट और 15 सीटें आई थीं, शिअद का ग्राफ यहीं से तेजी से गिरना शुरू हुआ। बसपा का जालंधर के गांवों में खासा जनाधार है। पिछली बार लोकसभा चुनावों में बसपा उम्मीदवार बलविंदर कुमार को 2 लाख से अधिक मत मिले थे। अकाली दल व बसपा की रणनीति है कि गांवों में दलितों के अलावा जाट बिरादरी की वोट लेकर कांटे की टक्कर बाकी उम्मीदवारों को दी जा सकती है।