लखनऊ: 2017 में एफआईआर, 2019 में दोषी, अब 2024 में बरी, जानें चौंकाने वाला मामला
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पत्नी की हत्या के आरोप में सत्र अदालत द्वारा दोषसिद्ध ठहराए गए, आरोपी पति को न सिर्फ बरी कर दिया है बल्कि उसके द्वारा साढ़े सात साल जेल में बिताने के एवज में उसे एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी राज्य सरकार को दिया है। न्यायालय ने कहा कि अभियोजन इस तथ्य को ही सिद्ध नहीं कर सका कि मामले में जिस शव की बरामदगी कर उसे अभियुक्त की पत्नी का बताया गया, वह वास्तव में अभियुक्त की पत्नी का था भी या नहीं।
यह निर्णय न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने पति हफीज खान की ओर से दायर की गई आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। मामला बहराइच जनपद के रिसिया थाने का है। हफीज खान पर पत्नी सायरा बानो की हत्या का आरोप था। सायरा बानो की शादी 11 मई 2016 को हफीज खान से हुई थी। 15 जनवरी 2017 को मृतका की बहन शाबाना ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि उसकी बहन को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है। बाद में एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने केन्नू की कब्र से एक शव बरामद किया और फिर शाबाना और उसकी एक अन्य बहन परवीन ने शव की पहचान बहन सायरा बानो के रूप में की। जांच के बाद पुलिस ने 10 अप्रैल 2017 को अभियुक्त पति के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। बहराइच के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पंचम ने 27 मार्च 2019 को सायरा बानो की हत्या के लिए पति को उम्रकैद की सजा सुनाई और 60 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। पति ने 2019 में दोषसिद्धि के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि पंचनामा रिपोर्ट और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शव पर कुछ कपड़े, एक धागा और एक ताबीज थे लेकिन अभियोजन ने उन वस्तुओं के बारे में चुप्पी साध ली और उक्त शव को सायरा बानो का शव सिद्ध करने के लिए किसी भी गवाह से उन वस्तुओं के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछा गया। न्यायालय ने कहा कि इसलिए यह साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं था कि सायरा बानो की हत्या की गई थी और शव सायरा बानो का ही था। न्यायालय ने अपने आदेश में आगे कहा कि अभियुक्त पति को 15 जनवरी 2017 को एफआईआर दर्ज होने के बाद हिरासत में लिया गया था और वह आज तक जेल में है, अब जबकि इस अदालत ने पाया है कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था तो यह मामला मुकदमे की लागत के साथ-साथ उसके साढ़े सात साल के बिना साक्ष्य के कारावास के लिए मुआवजे का आदेश देना भी न्यायोचित है।
विवाहिता को प्रताड़ित करने और दहेज की मांग पूरी न होने पर जबरन गर्भपात कराने के आरोपी पति नीरज गोस्वामी, ससुर विनोद कुमार गोस्वामी, सास प्रमिला गोस्वामी और देवर अमित कुमार गोस्वामी को दोषी ठहराते हुए अपर सत्र न्यायाधीश आशुतोष कुमार सिंह ने 10 वर्ष के कठोर कारावास एवं 48 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। कोर्ट ने चचेरी सास शकुंतला गोस्वामी को 3 वर्ष के कारावास एवं 13 हजार रुपए के अर्थ दंड लगाया है। जुर्माने की रकम पीड़िता को दी जाएगी। अभियोजन की ओर से एडीजीसी पंकज कुमार श्रीवास्तव ने बताया रिपोर्ट पीड़िता प्रीति गोस्वामी ने 12 जुलाई 2010 को महिला थाने में दर्ज कराई थी।
जिसमें कहा गया था कि वह एक प्राइवेट कंपनी में टीम डेवलेपर के पद पर काम करती है। उसकी शादी 20 फरवरी 2009 को महानगर निवासी नीरज गोस्वामी के साथ हुई थी। शादी में उसके पिता द्वारा 14 लाख रुपए खर्च किए गए थे। इसके बावजूद ससुराल में पहुंचने पर पति समेत सभी कम दहेज के लिए ताना देने लगे। आरोप है कि पति, सास, ससुर एवं देवर ने वर्ष 2009 में उसका जबरन गर्भपात करा दिया। आरोप लगाया कि उसे कमरे में बंद कर मिट्टी का तेल डाल दिया गया तथा आग लगाने ही जा रहे थे तभी उनकी बहन संगीता गिरी आ गई। शोर मचाने पर बाहरी लोग इकट्ठा हो गए। इस घटना के बाद घर वालों को समझाया गया लेकिन फिर मारपीट करने लगे। मारपीट में आए जख्म पर नमक डाल दिया जाता था। ससुराल वालों ने दस लाख रुपये दहेज की मांग की। न देने पर जेवर छीनकर घर से निकाल दिया। मारपीट के बाद वह अस्पताल में भर्ती रही।