महादेव के फेवरेट कैसे बने नंदी? उनके कान में क्यों कहते हैं अपनी मन्नत, इस महाशिवरात्रि जरूर कर लें ये काम
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भगवान भोलेनाथ के भक्त महाशिवरात्रि की तैयारी में जुटे हुए हैं. मंदिरों में महाशिवरात्रि मनाने की तैयारी की जा रही है और भगवान भोलेनाथ के विवाह उत्सव की तैयारी हो रही है. भगवान भोलेनाथ की पूजा के दौरान शिव भक्त उनके सबसे प्रिय शिष्य नंदी की भी पूजा-अर्चना करते हैं. ऐसे में आपके मन में भी यह सवाल कभी ना कभी जरूर आया होगा कि आखिर भोलेनाथ की पूजा के साथ-साथ नंदी की पूजा क्यों की जाती है, आज हम आपको इसी सवाल का जवाब बताने वाले हैं.
अकेले द्वारपाल नहीं हैं नंदी, फिर भी हैं खास
ज्योतिषाचार्य पंडित शत्रुघ्न आचार्य बताते हैं कि भगवान भोलेनाथ के अनेक द्वारपाल हैं, लेकिन उनमें से नंदी सबसे खास हैं और भगवान भोलेनाथ ने उन्हें ही अपना वाहन भी चुना है. ऐसी मान्यता है कि नंदी बैल हैं और बैल काफी भोला तो होता है पर वह कर्मठ और जुझारू भी होता है. ठीक भगवान भोलेनाथ की तरह और इसीलिए नंदी भगवान भोलेनाथ को काफी खास है.
इसके अलावा मान्यता यह भी है कि भगवान भोलेनाथ को नंदी सबसे अधिक प्रिय हैं और वह उनकी बात को नहीं टाल सकते. इसलिए लोग पूजा करने के दौरान अपनी मान्यता भगवान भोलेनाथ के सबसे प्रिय शिष्य नंदी के कान में रहते हैं और लोगों के बीच यह मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी मन्नत अवश्य पूरी होती है.
नंदी कैसे बने भगवान भोलेनाथ के सबसे बड़े भक्त
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया था, तब उसमें से अमृत और विष निकला था. अमृत कलश तो देवताओं को दे दिया गया पर विष का कलश भगवान भोलेनाथ ने स्वयं रख लिया था और उसे हलाहल विष को पी लिया था. उन्होंने बताया कि जिस वक्त भगवान भोलेनाथ हलाहल विष का पान कर रहे थे, विष की कुछ बूंदे उससे टपक कर जमीन पर गिर गई थी.
इस दौरान नंदी ने अपने प्राण की चिंता न किए बगैर उस विष के बूंद को अपनी जीभ से चाट कर साफ कर दिया था.जिसके कारण भगवान भोलेनाथ ने उन्हें अपना सबसे प्रिय शिष्य मान लिया और उन्हें अपने वाहन के रूप में भी स्वीकार कर लिया. ऐसे में भगवान भोलेनाथ की पूजा के साथ-साथ नंदी की पूजा करना काफी सही माना जाता है.