निपुणता जितनी बढ़ेगी, उतने ही रोजगार के अवसर अधिक मिलेंगे- राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय

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चौधरी रणबीर सिंह विश्वविधालय में आयोजित चतुर्थ दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया. जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश डॉ. सूर्यकांत व राज्यपाल दत्तात्रेय ने मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की. न्यायधीश डॉ. सूर्यकांत ने मां सरस्वती की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया. राज्यपाल दत्तात्रेय ने दीक्षांत समारोह में 2021 से 2023 तक के 744 विद्यार्थियों को डिग्री दी, जिनमें 509 छात्राएं शामिल थी. विभिन्न विषयों के 21 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए, जिनमें 18 छात्राएं शामिल रहीं. उन्होंने समारोह में शिक्षा के क्षेत्र के उल्लेखनीय योगदान देने वाले डीएवी शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष पूनम सूरी को पीएचडी की मानद उपाधि से नवाजा.

राज्यपाल दत्तात्रोय ने विद्यार्थियों से आह्वान करते हुए कहा कि वे जहां भी जाएं, अपने अभिभावकों, समाज व राष्ट्र के साथ-साथ अपने विश्वविद्यालय को कभी न भूलें. जहां से उन्होंने शिक्षा-दीक्षा ली है. उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों में हमेशा नई तकनीक सीखकर आगे बढने, नवाचार और नया शोध करने की भावना का होना जरूरी है. निपुणता जितनी बढ़ेगी, उतने ही रोजगार के अवसर अधिक मिलेंगे. उनहोंने कहा कि युवाओं में समाज के प्रति समर्पण की भावना होनी चाहिए. राज्यपाल ने कहा कि जीवन में पैसा सर्वोपरि नहीं मानना चाहिए, बल्कि जीवन में मूल्यों को होना जरूरी है. जीवन मूल्यों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अगर किसी इंसान ने धन को खो दिया समझो कुछ नहीं खोया, अगर स्वास्थ्य खोया है तो समझो कुछ नुकसान हुआ है और अगर चरित्र को खोया है तो समझो सब कुछ खो दिया है.

दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश डॉ. सूर्यकांत ने सबसे पहले विश्वविद्यालय प्रशासन और डिग्री हासिल करने वाले विद्यार्थियों व शोधार्थियों को शुभकामनाएं दी. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि गुणवत्तायुक्त शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है. शिक्षा नैतिक मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए. इसी से ही आने वाली पीढ़ी सभ्य और समाज के प्रति समर्पित बनेगी. उन्होंने कहा कि देश की उन्नति के लिए पूर्ण संसाधनों का होना जरूरी है, जिनमें इंसान के अंदर दक्षता, निपुणता और कुशलता मुख्य रूप से शामलि है. न्यायधीश ने कहा कि देश को समृद्धशाली बनाने के लिए निरंतर प्रगति जरूरी है.

 

न्यायधीश डॉ. सूर्यकांत ने संबोधन के माध्यम से अपने विद्यार्थी जीवन की यादें ताजा कर सांझा की. भले ही उस समय संसाधानों का अभाव था, लेकिन उनमें सीखने की प्रबल भावना थी. ग्रामीण परिवेश से शिक्षा लेकर वे जिस मुकाम तक पहुंचे हैं, उसमें उनके शिक्षकों का अहम योगदान है, जिनकी दुआएं अब भी उनके साथ रहती हैं. शिक्षकों ने हमेशा उनको नई दिशा दी और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने दीक्षांत समारोह में मौजूद विद्यार्थियों से भी आह्वान किया कि वे नए आइडिया के साथ आगे बढ़ें.

 

 

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