आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 686

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अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 686, दिनांक 05-01-2024

 

धनासरी महला 5 घर 6 अस्तपदी 4 सतगुर प्रसाद जो जो जूनि आयो तिह तिह उर्जहयो मानस जन्मु जोगी पा॥ ताकी है ओट साध राखु दे करि हाथ करि किरपा मेलहु हरि रया।।1।। अनिक को जन्मतिथि नहीं मिली. करौ सेवा गुर लागौ चरण गोविंद जी का मरगु देहु जी बताई।1। रहना अणिक उपवा करु माया कौ बचीति धरौ मेरि मेरि करत सद हि विहावै। कोई असो रे भेटै संतु मेरी लहै सगल चिंत ठाकुर सिउ मेरा रंगु लावै।2। पड़े रे सगल बिस्तर न चुकाई मन भेद एकु खिनु न धीरेह मेरे घर के पांचा॥ कोई असो रे भक्तु जू माया ते रहतु एकु अमृत नामु मेरेइ रिदै सिंचा।।3।।

 

 

 

अर्थ:- जो जो—जहरा जेहरा (जीव)। तिह तिह—उसी (जून) में। उर्जहयो-(माया के मोह में) फँसा हुआ है। संजोगी-सौभाग्य से। ताकी है—(मैं) ताकी है। साध – हे गुरू! द्वारा हाथ—{बहुवचन} दोनों हाथ। हरि राया—भगवान पतिशाह।1। भ्रमि – भटकने से। थिति—{iÔQiq} टिकौ। मिला करो—करो, मैं करता हूं। गुरु – हे गुरु! सही मेरा ऐसा ही सोचना है। सड़क बताइ देहु—बटै देहु.1. रहना उपवा—{‘उपौ’ शब्द का बहुवचन} युक्तियाँ। की ख़ातिर बचती – ठीक है मन में। मन में रुको, रुको, मैं रुकता हूँ। कर रहा है हमेशा के लिए रे-अरे भाई! भेटाय – प्राप्त हुआ। लहाई—ले जाओ। सीना—के साथ रंगु – प्रेम लावै—जोड़ें 2. रे-अरे भाई! सगल – वे सभी। चुकाई – रुक गया। भेद धिराहि – धैर्य रखना पंच – ज्ञान-इंद्रियाँ। रहतु – पृथक् । अमृत – आध्यात्मिक जीवन का दाता। रिदाय – हृदय में। रिंचा-पानी दो।3.

 

भावार्थ:- हे सतगुरु! कई जूनों में भटकने के बाद भी उसे रहने के लिए कोई जगह नहीं मिली (जूनों से बचने का कोई और ठिकाना नहीं)। अब मैं आपके चरणों में आ गया हूँ, आपकी ही सेवा करता हूँ, मुझे भगवान का मार्ग बताइये।।1।। रहना हे गुरू! जो भी जून में आया है, वह उसी (जून) में (माया के प्यार में) फँस गया है। मनुष्य जन्म (एक) भाग्य से प्राप्त हुआ है। हे गुरू! मैंने मदद के लिए आपकी ओर देखा है. मुझे अपना हाथ देकर (माया के प्यार से) बचा लो। कृपा करके मुझे प्रभु-पतिशाह से मिला दीजिये।।1।। अरे भइया! मैं (प्रतिदिन) माया के लिए बहुत सी युक्तियाँ करता रहता हूँ, (माया को) अपने मन में बहुत रखता हूँ, सदैव ‘मेरी माया, मेरी माया’ कहता रहता हूँ (मेरी उम्र बीत जाती है)। (अब मेरी इच्छा है कि) मुझे कोई ऐसा संत मिले, जो मेरे अंदर से प्रेम के सारे विचार दूर कर दे और मुझे भगवान से प्रेम करा दे।।2।। अरे भइया! सभी वेदों को पढ़ने से (उन्हें पढ़ने से) मन की ईश्वर से दूरी समाप्त नहीं होती, (वेदों को पढ़ने से) इंद्रियाँ एक क्षण के लिए भी शांत नहीं होतीं। अरे भइया! ऐसा कोई भी भक्त जो माया से मुक्त हो, (वही भक्त) मेरे हृदय में आध्यात्मिक जीवन देने वाले नाम का जल भर सकता है। 3.

 

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