आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 692
अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 692, दिनांक 09-12-2023
रागु धनासरि बानी भगत कबीर जी की राम सिमरी राम सिमरी राम सिमरी भाई राम नाम सिमरन बिनु बूदे अधिकाई।1। रहना बनिता सुत देह गृह संपति सुकदै॥ मुझमें कछु नहीं तेरो काल अवध मैं।1। अजामल गज गणिका ने पाप कर्म किये। तेऊ उतारि पारे राम नाम लें।।2।। सुकर कुकर जोनि भ्रमे तू लाज न ऐ॥ राम नाम चढ़ि अमृत कहे बिखु खाई।।3।। तजि भरम कर्म बिधि निखेध राम नामु लेहि॥ गुर प्रसाद जन कबीर रामु कारी स्नेही।4.5।
अर्थ: राग धनासरी में भगत कबीर की बानी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा से मिलता है। अरे भइया! प्रभु का ध्यान करो, प्रभु का ध्यान करो। सदैव राम का ध्यान करो। भगवान का ध्यान किये बिना बहुत से प्राणी (व्यसनों में) डूब जाते हैं।1. रहना स्त्री, पुत्र, शरीर, मकान, धन- ये सब सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, परंतु जब मृत्यु का अंतिम समय आएगा, तब इनमें से कुछ भी तुम्हारा नहीं रहेगा।1. अजामल, गज, गणिका – ये विकार जारी रहे, लेकिन जब उन्होंने भगवान के नाम का ध्यान किया, तो वे भी (इन विकारों से) दूर हो गये।2. (हे सज्जन!) आप सूअरों, कुत्तों आदि की मांदों में भटकते रहे हैं, फिर भी आपको (अब) शर्म नहीं आती (आप अभी भी नाम का ध्यान नहीं करते हैं)। तुम भगवान् के अमृत-नाम को भूलकर (विकारों का) विष क्यों खा रहे हो? 3. (हे भाई!) शास्त्र के अनुसार कौन से कार्य करने चाहिए और कौन से कार्य शास्त्रों में निषिद्ध हैं – इस अंधविश्वास को छोड़ दो और भगवान के नाम का ध्यान करो। हे दास कबीर! गुरु की कृपा से अपने भगवान को अपना प्रिय (साथी) बना लो।4.5.
रघु धनासरि बानी भगत कबीर जी॥सतीगुर प्रसादि॥ राम सिमरी राम सिमरी राम सिमरी भाई राम नाम सिमरन बिनु बुड़ते अधिकाई ॥1॥ रहना बनिता सुत देह गृह संपति सुखदाई॥ मुझे उनसे कुछ नहीं कहना है, अब आपका अवध आने का समय आ गया है।1. अजामल गज गणिका पतित करम कियेन॥ तेउ उतारि पारे पारे राम नाम लिया॥2॥ सुकर कुकर जोनि भ्रमे तौ लाज ऐ॥ राम नाम चढ़ि अमृत कहे बिखु खाई॥3॥ तजि भरम करम बिधि निखेध राम नामु लेहि॥ गुर प्रसादि जन कबीर रामु करि सनेही॥4॥5॥
भावार्थ: भगत कबीर जी की वाणी रघु धनासारी में। अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा से मिलता है। अरे भइया! प्रभु का जाप करो, प्रभु का जाप करो। सदैव राम का जाप करो. प्रभु का जाप किए बिना कई जीव डूब जाते हैं। रहना पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, धन- ये सभी सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, लेकिन जब आपका अंत समय मृत्यु के रूप में आएगा, तो इनमें से कुछ भी आपका नहीं रहेगा। अजामल, गज, गणिका – ये विकार करते रहे, लेकिन जब उन्होंने भगवान का नाम लिया, तो वे भी (ये विकार) खत्म हो गए ॥2॥ (हे सज्जन!) து सूर, कुगते आदि के जन्मों में बहता रहा, फिर भी तुझसे (अब) शर्म नहीं आई (तू अभी भी नाम नाम सिमरता)। भगवान के अमृत-नाम को भूलकर विष क्यों खा रहे हो? 3 (हे भाई!) शास्त्र के अनुसार कौन से कर्म किये जाते हैं और कौन से कर्म शास्त्र में निषिद्ध हैं – इस भ्रम को त्याग दो और भगवान का नाम सिमर है। हे दास कबीर! गुरु की कृपा से तुमने अपने प्रभु को अपना प्रिय (मित्र) बना लिया है।4॥5॥