आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 719
अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 719, दिनांक 30-11-2023
बैराड़ी महला 4. हरि जनु राम नाम गुन गावै हरि जन की अपुना गुनु न गावै, जो कोई बदनामी।।1।। रहना तुम जो कुछ भी करोगे, उसे तुम स्वयं अर्जित करोगे, प्रभु। हर कोई राय देता है प्रभु, हर कोई बोलता है और पुकारता है।1. हरि आपे पंच ततु बिस्थरा विचि धातु पंच अपि पावै॥ जन नानक सतगुरु मेले आपे हरि आपे झगरु चकवै।।2.3।।
अर्थ: भगवान का भक्त सदैव भगवान का गुणगान करता है। यदि कोई व्यक्ति उस भक्त की निंदा करता है तो वह भक्त अपना चरित्र नहीं त्यागता।1. रहना (भक्त अपनी आलोचना सुनकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता, क्योंकि वह जानता है कि) स्वामी-प्रभु जो कुछ भी कर रहा है, वह स्वयं ही कर रहा है (प्राणियों में बैठकर), वह ही प्रत्येक कार्य कर रहा है। मालिक-प्रभु स्वयं ही (प्रत्येक प्राणी को) जीवन दे रहा है, स्वयं ही बोल रहा है (प्रत्येक में विराजमान है), स्वयं ही (प्रत्येक प्राणी को) बोलने के लिए प्रेरित कर रहा है।1. (भक्त जानता है कि) भगवान ने स्वयं ही (अपने से) पांच तत्वों की सृष्टि को बिखेरा है, ये तत्व पांच विषयों से भरे हुए हैं। हे नानक! भगवान स्वयं अपने सेवक से मिलते हैं और स्वयं ही उसके भीतर से (हर प्रकार का) आकर्षण दूर कर देते हैं। 2.3.
बैराड़ी महल 4 हरि जानु राम नाम गुन गावै जो कोई हरि जन की निन्दा करे, अपुना गुनु न गावै॥1॥ रहना आप जो भी करेंगे, पैसा आप खुद ही कमाएंगे। हरि आपे हि मति देवै सुआमि हरि आपे बोली बुलाइ 1। हरि आपे पंच ततु बिस्थरा विचि धातु पंच अपि पावै॥ जन नानक सतिगुरु मेले आपे हरि आपे झगरू चुकाई ॥2॥3॥
अर्थ: परमात्मा का भक्त हर समय परमात्मा के गुण गाता है। यदि कोई मनुष्य उस भगत की निंदा करता है तो वह भगत अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। रहना (भगत अपनी आलोचना सुनकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ते, क्योंकि वे जानते हैं) भगवान जो कुछ भी कर रहे हैं, सब कुछ स्वयं ही कर रहे हैं। प्रभु (प्रत्येक प्राणी को) समझ देते हैं, बोलते हैं (प्रत्येक प्राणी में विराजमान हैं), (प्रत्येक प्राणी को) बोलने की प्रेरणा देते हैं॥1॥ (भगत जनता है की) भगवान ने स्वयं (स्वयं द्वारा) पांच तत्वों का संसार फैलाया है, आप इन पांच तत्वों में पांच विषयों से भरे हुए हैं। हे नानक! भगवान अकेले ही अपने सेवक को एकजुट करते हैं, भगवान, अकेले (उसके अंदर से हरे पुरख की खिचोटन ॥) समाप्त होता है ॥2॥3॥