लोकहित सेवा समिति द्वारा महिला संकीर्तन मंडली ढकोली के सहयोग से श्री शिव मंदिर रेलवे फाटक ढकोली में आयोजित

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लोकहित सेवा समिति द्वारा महिला संकीर्तन मंडली ढकोली के सहयोग से श्री शिव मंदिर रेलवे फाटक ढकोली में आयोजित सात दिन तक चली श्रीमद् भागवत कथा का सुदामा और भगवान श्री कृष्ण मिलन के साथ ही समापन हो गया। समिति के प्रवक्ता अशोक जिन्दल ने बताया है कि आज भाजपा जिला सचिव विमल गुप्ता मुख्य अतिथि रहे, जबकि वृंदावन सोसायटी के प्रधान समाजसेवी विजय कुमार विशेष अतिथि रहे। वृन्दावन धाम से पधारे विख्यात कथावाचक महामंडलेश्वर योगी हितेश्वरनाथ मिश्रा ने कथा श्रोताओं को बताया कि सुदामा जी शिक्षा और दीक्षा के बाद अपने ग्राम अस्मावतीपुर (वर्तमान पोरबन्दर) में भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करते थे। सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। विवाह के बाद वे अपनी पत्नी सुशीला और बच्चों को बताते रहते थे कि मेरे मित्र द्वारिका के राजा श्रीकृष्ण है जो बहुत ही उदार और परोपकारी हैं। यह सुनकर एक दिन उनकी पत्नी ने डरते हुए उनसे कहा कि यदि आपने मित्र साक्षात लक्ष्मीपति हैं और उदार हैं तो आप क्यों नहीं उनके पास जाते हैं। वे निश्‍चित ही आपको प्रचूर धन देंगे, जिससे हमारी कष्टमय गृहस्थी में थोड़ा बहुत तो सुख आ जाएगा। सुदामा संकोचवश पहले तो बहुत मना करते रहे लेकिन पत्नी के आग्रह पर एक दिन वे कई दिनों की यात्रा करके द्वारिका नगरी पहुंच गए।द्वारिका में द्वारपाल ने उन्हें रोका। मात्र एक ही फटे हुए वस्त्र को लपेट गरीब ब्राह्मण जानकर द्वारपाल ने उसे प्रणाम कर यहां आने का आशय पूछा। जब सुदामा ने द्वारपाल को बताया कि मैं श्रीकृष्ण का मित्र हूं, तो द्वारपाल को आश्चर्य हुआ। फिर भी उसने नियमानुसार सुदामा जी को वहीं ठहरने का कहा और खुद महल में गया और श्रीकृष्ण से कहा, हे प्रभु कोई फटेहाल दीन और दुर्बल ब्राह्मण आपसे मिलना चाहता है जो आपको अपना मित्र बताकर अपना नाम सुदामा बतलाता है। द्वारपाल के मुख से सुदामा नाम सुनकर प्रभु सुध बुध खोकर नंगे पैर ही द्वार की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने सुदामा को देखते ही अपने हृदय से लगा लिया और प्रभु की आंखों से आंसू निकल पड़े। वे सुदामा को आदरपूर्वक अपने महल में ले गए। महल में ले जाकर उन्हें सुंदर से आसन पर बिठाया और रुक्मिणी संग उनके पैर धोये। कहते हैं कि प्रभु को उनके चरण धोने के जल की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उनकी दीनता और दुर्बलता देखकर उनकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी। स्नान, भोजन आदि के बाद सुदामा को पलंग पर बिठाकर श्रीकृष्ण उनकी चरणसेवा करने लगे और गुरुकुल में बिताए दिनों की बातें करने लगे। बातों ही बातों में यह प्रसंग भी आया कि किस तरह दोनों मित्र वन में समाधि लेने गए थे और रास्ते में मूसलधार वर्षा होने लगी, तो दोनों मित्र एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गए। सुदामा के पास एक पोटली में दोनों के खाने के लिए गुरुमाता के दिए कुछ चने थे। किंतु वृक्ष पर सुदामा अकेले ही चने खाने लगे। चने खाने की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण ने पूछा कि क्या खा रहे हैं सखा? सुदामा ने यह सोचकर झूठ बोल दिया कि कुछ चने कृष्ण को भी देने पड़ेंगे। उन्होंने कहा, कुछ खा नहीं रहा हूं। यह तो ठंड के मारे मेरे दांत कड़कड़ा रहे हैं। इस प्रसंग के दौरान ही श्रीकृष्ण ने पूछा, भाभी ने मेरे लिए कुछ तो भेजा होगा? सुदामा संकोचवश एक पोटली छिपा रहे थे। भगवान मन में हंसते हैं कि उस दिन चने छिपाए थे और आज तन्दुल छिपा रहा है। फिर भगवान ने सोचा कि जो मुझे कुछ नहीं देता मैं भी उससे कुछ नहीं देता। लेकिन मेरा भक्त है तो अब इससे छीनना ही पड़ेगा। तब उन्होंने तन्दुल की पोटली छीन ली और सुदामा के प्रारब्ध कर्मों को क्षीण करने के हेतु तन्दुल को बेहद चाव से खाया था। फिर सुदामा ने अपने परिवार आदि के बारे में तो बताया लेकिन अपनी दरिद्रा के बारे में कुछ नहीं बताया। अंत में प्रभु ने सुदामा को सुंदर शय्या पर सुलाया। फिर दूसरे दिन भरपेट भोजन कराने के बाद सुदामा को विदाई दी। किंतु विदाई के दौरान उन्हें कुछ भी नहीं दिया। रास्ते भर सुदामा सोचते रहे कि हो सकता है कि उन्हें इसी कारण से धन नहीं दिया गया होगा कि कहीं उनमें अहंकार न आ जाए। यह विचार करते करते सुदाम अपने मन को समझाते हुए जब घर पहुंचे तो देखा, उनकी कुटिया के स्थान पर एक भव्य महल खड़ा है और उनकी पत्नी स्वर्णाभूषणों से लदी हुई तथा सेविकाओं से घिरी हुई हैं। यह दृश्य देखकर सुदामा की आंखों से आंसू निकल आया और वे सदा के लिए श्री कृष्ण की कृपा से अभिभूत होकर उनकी भक्ति में लग गए। आज सुदामा श्री कृष्ण मिलन वृतांत को सुनकर उपस्थित जनसमूह की आंखे नम हो गई। कथा के अन्त में महिलाओं एवम् पुरुषों ने धार्मिक भजनों पर नृत्य कर माहौल को रोमांचक बना दिया। भागवत कथा को सफल बनाने में भावना चौधरी, अशोक जिंदल, विमल गुप्ता, सतीश भारद्वाज, विजय कुमार, अलका शर्मा, सीमा माथुर, मुकेश गांधी, अनुज अग्रवाल, जे.आर शर्मा तथा किरण मल्होत्रा का सराहनीय योगदान रहा।

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