अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 822, दिनांक 02-04-2024

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अमृत ​​वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 822, दिनांक 02-04-2024

 

 

बिलावलु महला 5. संत सारणी संत तहल कारी धांधू बंधु अरु सगल जंजारो अवर काज ते छूटि परी।1। रहना सुख सहज अरु घनो आनंद गुर ते पायो नामु हरि। असो हरि रसु बरनी न साकौ गुरि पुरै मेरी उलटि धरि।1। पेखियो मोहनु सब कै संगे उन न काहू सगल भारी॥ पूरन पुरी हाओ किरपा निधि कहु नानक मेरी पुरी परी।2.7.93।

 

बिलावलु महल 5 संत सारणी ने पदयात्रा की. धंधु बंधु अरु सगल जंजारो अवर काज ते मख्ति परी॥1॥ रहना सुख सहज अरु घनो आनंद गुर ते पायो नामु हरि॥ सो हरि रसु बरनि न सकौ घुरि థెలి మ్రి ల్టి థరి ॥1॥ पेखियो मोहनु सभ कै संगे ऊन न काहू सगल भारी॥ पुरन पुरी रहियो किरपा निधि कहु नानक मेरी पुरी परी ॥2॥7॥93॥

 

संत सारणी = गुरु की शरण। कारी = (कब) मैंने किया। धांधू = व्यापार, खलजगन। बन्धु = बंधन। अरु = और. जंजारो = जंजाल। काज ते = कार्यों से। छोटी परी = (मेरी दुल्हन) ढीली हो गई।1. सहज = मानसिक स्थिरता। घनो = बहुत। पर = से असो = वैसा। बरनी न सकाउ = {सकौं} मैं समझा नहीं सकता। गुरी = गुरु. गुरी पूरई = संपूर्ण गुरु द्वारा। मेरी = मेरी ब्रिटी विपरीत धारी = (माया द्वारा) आवरण दिया।1. पेख्यो = मैंने देखा। मोहनु = सुंदर भगवान {मूल पृष्ठ 248 देखें। इसमें भी बाबा मोहन जी का नहीं बल्कि प्रभु का जिक्र है. काई संगे = साथ। अन = ऊना, खाली। सगल = सारी सृष्टि। किरपा निधि = भगवान की कृपा का खजाना। नानक = हे नानक! पूरी पूरी=मेरा परिश्रम सफल हुआ।2.7.93।

 

 

 

अरे भइया! जब मैं गुरु के निवास पर आया, जब मैंने गुरु की सेवा करना शुरू किया, (मेरे भीतर) व्यापार, बंधन और सभी उलझनें गायब हो गईं, मेरी स्वतंत्रता अन्य गतिविधियों से अलग हो गई। 1. रहना अरे भइया! गुरु से मुझे भगवान का नाम मिला (जिनके आशीर्वाद से) आध्यात्मिक स्थिरता का सुख और आनंद (मुझमें उत्पन्न हुआ)। हरि-नाम का स्वाद मुझे ऐसा आया कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। गुरु ने मुझे मेरी बृति माया का आवरण दे दिया।।1।। अरे भइया! (गुरु की कृपा से) मैंने प्रत्येक वस्तु में सुन्दर भगवान का वास देखा है, कोई भी स्थान उस भगवान से रहित नहीं है, सारी सृष्टि भगवान के जीवन से भरी हुई लगती है। ईश्वर की कृपा का खजाना हर जगह पूरी मात्रा में प्रकट हो रहा है। हे नानक! कहो (हे भाई! गुरु की कृपा से) मेरा परिश्रम सफल हो गया।।2.7.93।

 

 

 

अरे भइया! जब मैंने गुरु की शरण ली, जब मैं गुरु की सेवा करने लगा, (मेरे भीतर से) व्यापार, बंधन और सभी झंझट समाप्त हो गए, मेरी दोस्ती और अन्य काम अस्थिर हो गए। अरे भइया! गुरु से मैंने भगवान का नाम (जिसकी बरकत से) आत्मिक अदोलता का सुख और आनंद (मुझमें पैदा हुआ) प्राप्त किया है। हरि-नाम का स्वाद मुझे ऐसा आया कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। गुरु ने मेरा विवाह माया से दूर कर दिया। अरे भइया! (गुरु की कृपा से) मैंने हर चीज़ में सुंदर भगवान का वास देखा है, उस भगवान के बिना कोई जगह नहीं देखी जाती है, सारा संसार भगवान के जीवन से भरा हुआ दिखाई देता है। कृपा का खजाना भगवान को हर जगह व्यापक रूप में देखा जाता है। हे नानक! कहो (हे भाई! गुरु की कृपा से) मेरा परिश्रम सफल हो गया।

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