‘योग’ शब्द का सबसे पहले उल्लेख, योग और योग में क्या अंतर है?

चंडीगढ़, 21 जून
‘योग’ शब्द का सबसे पहले उल्लेख, योग और योग में क्या अंतर है?
शाब्दिक रूप से, योग का अर्थ है “जुड़ना”, योग आत्म-समझ की यात्रा है, योग के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन प्राप्त किया जा सकता है। योग शारीरिक और मानसिक शांति प्राप्त करने का सबसे आसान और बेहतरीन तरीका है।
योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर और आत्मा के एकीकरण (ध्यान) को योग कहा जाता है। योग मन को शब्दों से मुक्त करने और शांति और शून्यता से जोड़ने का एक तरीका है। योग समझने से अधिक करने की एक विधि है। योग करने से पहले योग के बारे में जानना बहुत जरूरी है। योग के कई अंग और प्रकार हैं, जिनके द्वारा हमें ध्यान, समाधि और मुक्ति तक पहुंचना होता है। ‘योग’ शब्द और उसकी प्रक्रिया और यह अवधारणा हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान की प्रक्रिया से संबंधित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ-साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका तक फैला।
‘योग’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इसके बाद कई उपनिषदों में इसका उल्लेख मिलता है। कठोपनिषद में योग शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उसी अर्थ में किया गया है जिस अर्थ में इसे आधुनिक काल में समझा जाता है। माना जाता है कि कठोपनिषद की रचना 5वीं और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच हुई थी। पतंजलि का योगसूत्र योग पर सबसे पूर्ण पुस्तक है। ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना पहली शताब्दी ईस्वी में या उसके आसपास की गई थी। हठ योग ग्रंथों की रचना 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच हुई थी।