पंजाब में पराली जलाने का सिलसिला जारी: अब तक 62 मामले आए सामने, अमृतसर सबसे आगे, 14 किसानों पर केस दर्ज

पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकारी सख्ती और जागरूकता अभियानों के बावजूद किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। सोमवार (23 सितंबर, 2025) को राज्य में पराली जलाने के 62 मामलों की पुष्टि हुई, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि इस वर्ष भी समस्या गंभीर बनी हुई है।
अमृतसर बना हॉटस्पॉट
पंजाब सरकार द्वारा 15 सितंबर से सेटेलाइट मॉनीटरिंग शुरू की गई थी, जिसके बाद से अब तक सामने आए कुल 62 मामलों में से सबसे ज्यादा 38 केस अकेले अमृतसर जिले से दर्ज किए गए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि अमृतसर पराली जलाने की घटनाओं का मुख्य केंद्र बना हुआ है।
जिलावार आंकड़े
अब तक अमृतसर में 38, पटियाला में 7, तरनतारन में 7 और बरनाला में पराली जलाने के 2 मामले सामने आए हैं जबकि बठिंडा, फिरोजपुर, होशियारपुर, जालंधर, कपूरथला, संगरूर, एसएएस नगर, मालेरकोटला: प्रत्येक में 1 मामला सामने आया है।
साल-दर-साल तुलना
2022 में इस समय तक 62 मामले सामने आए थे। 2023 में इसी अवधि में केवल 7 मामले दर्ज हुए थे। 2025 में फिर से मामले बढ़कर 62 हो गए हैं, जो चिंता का विषय है। इस तुलना से साफ है कि 2023 में आई गिरावट के बाद इस साल पराली जलाने के मामले फिर से बढ़ गए हैं, जो कि नीति-निर्माताओं और प्रशासन के लिए एक बड़ा चेतावनी संकेत है।
प्रशासन की कार्रवाई
27 मामलों में 1.25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। अब तक 50 हजार रुपये की वसूली की जा चुकी है। 14 किसानों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 223 BNS के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
रेड एंट्री की चेतावनी
पंजाब सरकार ने सख्ती दिखाते हुए पराली जलाने वाले 15 किसानों के भूमि रिकॉर्ड में ‘रेड एंट्री’ कर दी है। इस कार्रवाई का असर यह होगा कि संबंधित किसान अपनी जमीन बेच नहीं सकते, जमीन को गिरवी नहीं रख सकते और उस पर लोन भी नहीं ले सकते।
पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं फिर से बढ़ रही हैं, और अमृतसर जैसे जिले इस समस्या के केंद्र में हैं। प्रशासन द्वारा जुर्माना, एफआईआर और रेड एंट्री जैसे कड़े कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन अगर यही प्रवृत्ति जारी रही तो आने वाले दिनों में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट जैसे गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। जरूरत है कि सरकार, किसान संगठनों और स्थानीय निकाय मिलकर ठोस समाधान की दिशा में काम करें — ताकि किसानों को पराली प्रबंधन के लिए व्यवहारिक विकल्प मिल सकें और पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके।