पंजाब में भ्रष्टाचार पर मान सरकार की बड़ी कार्रवाई, मुक्तसर के डीसी निलंबित; विजिलेंस प्रमुख भी बदले

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 मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अधिकारियों को भ्रष्टाचार रोकने या नतीजे भुगतने की चेतावनी के तीन दिन बाद ही बड़ी कार्रवाई कर दी। सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले में श्री मुक्तसर साहिब के डिप्टी कमिश्नर राजेश त्रिपाठी को निलंबित कर दिया है। निलंबन से पहले उन्हें पद से हटा दिया गया।
सरकार ने विजिलेंस प्रमुख भी बदल दिया है। वीरेंद्र कुमार को हटाकर नागेश्वर राव को नई जिम्मेदारी दी गई है।पंजाब में राजेश त्रिपाठी संभवत: पहले ऐसे डीसी हैं जिन्हें भ्रष्टाचार के मामले में निलंबित किया गया। इससे पहले फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर रहे डीके तिवारी को भी निलंबित किया गया था। उन्होंने छुट्टी मंजूर हुए बिना स्टेशन छोड़ा था। हालांकि चार दिन बाद ही वह बहाल हो गए थे।
सरकार ने स्पष्ट नहीं किया कि भ्रष्टाचार के किस मामले में राजेश त्रिपाठी को निलंबित किया गया है। विभाग के एक उच्चाधिकारी ने बताया कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले हैं। उनको पद से हटाने और निलंबित करने के बाद सरकार ने उन पर लगे भ्रष्टाचारों के मामलों को विजिलेंस को सौंप दिया है।

विजिलेंस प्रमुख वीरेंद्र कुमार को बदलने का मामला सीधे रूप से किसी भ्रष्टाचार से जुड़ा तो नहीं है, लेकिन सरकारी सूत्र बताते हैं कि विजिलेंस की वजह से पंजाब सरकार की छवि काफी खराब हुई है। विजिलेंस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु पर टेंडर घोटाले का मामला दर्ज किया था लेकिन हाई कोर्ट में सरकार को खासी फजीहत का सामना करना पड़ा।

इसी तरह मोहाली में औद्योगिक जमीन तबादले मामले में विजिलेंस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा और आइएएस अधिकारी नीलिमा पर पर्चा दर्ज किया था, लेकिन यह केस भी हाई कोर्ट में टिक नहीं पाया।

हाई कोर्ट ने फैसले में यहां तक कहा कि विजिलेंस ने 500-700 करोड़ रुपये के नुकसान का जो आरोप लगाया वह कल्पना मात्र था। आशु मामले में भी हाई कोर्ट ने कमोवेश इसी तरह का फैसला दिया था। अहम बात यह है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से वीरेंद्र कुमार ही विजिलेंस प्रमुख थे, लेकिन बिगड़ती छवि को देखते हुए सरकार ने अब उन्हें बदल दिया है।
नियम के अनुसार, आइएएस अधिकारी को निलंबित करने के 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को सूचित करना होगा। 15 दिन के भीतर निलंबित किए गए अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट तैयार करके केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजना होता है। केंद्र सरकार 30 दिन में उसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। अगर 30 दिन के भीतर केंद्र सरकार कोई जवाब नहीं देती तो उसे अस्वीकार ही माना जाता है। ऐसे में अधिकारी बहाल हो जाता है।

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