मीडिया को कोई बयान, समाचार प्रकाशित करने से पहले अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए : न्यायालय
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उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मीडिया में प्रमुख पदों पर कार्यरत व्यक्तियों को कोई भी बयान, समाचार या विचार प्रकाशित करने से पहले अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए। हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि है। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि जनमत को आकार देने में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है और प्रेस तेज गति से जन भावनाओं को प्रभावित करने और धारणाओं को बदलने की क्षमता रखता है। पीठ ने यह टिप्पणी समाचार पत्र ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के संपादकीय निदेशक और अन्य पत्रकारों के खिलाफ मानहानि का मामला खारिज करते हुए की, जिन पर ‘बिड एंड हैमर – फाइन आर्ट ऑक्शनियर्स’ द्वारा नीलाम की जाने वाली कुछ पेंटिंग की प्रामाणिकता पर कथित मानहानिकारक खबरें प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया था। पीठ ने 18 फरवरी के अपने फैसले में कहा, हम इस बात पर जोर देना जरूरी समझते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि है।
साथ ही, यह भी उल्लेख किया जाता है कि मीडिया में काम करने वाले व्यक्तियों, विशेषकर प्रमुख पदों पर कार्यरत व्यक्तियों, लेखकों आदि को कोई भी बयान, समाचार या विचार प्रकाशित करने से पहले अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए तथा जिम्मेदारी के साथ ऐसा करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने ब्रिटिश उपन्यासकार एवं कवि बुल्वर लिटन के कथन को उद्धृत करते हुए कहा, कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है। पीठ ने कहा कि मीडिया की व्यापक पहुंच को देखते हुए, कोई आलेख या रिपोर्ट लाखों लोगों को प्रभावित कर सकती है तथा उनके निर्णय को आकार दे सकती है। किसी मीडिया रिपोर्ट या आलेख से संबंधित लोगों की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है, जिसके परिणाम दूरगामी और स्थायी हो सकते हैं। पीठ ने कहा, यह मीडिया रिपोर्टिंग में सटीकता और निष्पक्षता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करता है, खासकर ऐसे मामलों से निपटने में, जो व्यक्तियों या संस्थानों की सत्यनिष्ठा को प्रभावित करने की क्षमता रखते हों। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, समाचार आलेखों का प्रकाशन जनहित और सद्भाव के साथ किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत, कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ पत्रकारों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। वे भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं। शिकायतकर्ता (नीलामी संस्थान) ने आरोप लगाया कि सभी आरोपी व्यक्तियों द्वारा मुद्रित, प्रकाशित और प्रसारित की गई मानहानिकारक खबरों ने पाठकों को शिकायतकर्ता को संदेह की दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित किया। उसने आरोप लगाया कि इस अनुचित और बेबुनियाद सार्वजनिक विचार को बढ़ावा दिया गया कि नीलामी के माध्यम से बिक्री के लिए पेश की गई इसकी कृतियां नकली हो सकती हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मजिस्ट्रेट के समन आदेश में प्रक्रियागत अनियमितताओं पर गौर किया और कहा कि शिकायतकर्ता ऐसा कोई गवाह पेश करने में विफल रहा, जिससे प्रथम दृष्टया यह साबित हो सके कि कथित आरोपों से उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।