Haryana Assembly Election: हरियाणा में अबकी बार किसकी सरकार; सत्ता विरोधी लहर को मात दे पाएगी बीजेपी? समझिए 10 प्वाइंट में

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हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है। 1 अक्टूबर को वोटिंग होनी है, लेकिन उससे पहले के घटनाक्रम बताते हैं कि पार्टी के लिए माहौल अनुकूल नहीं है। टिकटों को लेकर घमासान मचा हुआ है। नायब सिंह सैनी करनाल छोड़कर चुनाव लड़ने लाडवा पहुंच गए हैं तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। आखिर हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की स्थिति कैसी है, क्या भाजपा नेताओं का ये दावा सच होगा कि पार्टी तीसरी बार राज्य में सरकार बनाएगी?

समझिए 10 प्वाइंट में –

1. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपनी सीट बदल ली है। कहा जा रहा है कि करनाल के बजाय नायब सैनी लाडवा सीट से चुनाव लड़ेंगे। चुनाव से ठीक पहले सीट बदलना बताता है कि सीएम को पुरानी सीट से जीत का भरोसा नहीं है। करनाल मनोहर लाल खट्टर की सीट रही है। 10 साल के बीजेपी के कार्यकाल में ज्यादातर समय मनोहर लाल खट्टर ही सीएम रहे, लेकिन नायब सिंह सैनी को करनाल से जीत का भरोसा नहीं है? उनका फैसला तो यही कहता है।

2. हरियाणा के मुख्यमंत्री ही नहीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली भी चुनाव लड़ने से पीछे हट चुके हैं। बड़ौली सोनीपत के राय से सीट विधायक हैं। हालांकि चुनाव नहीं लड़ेंगे।

3. चुनाव का ऐलान होते ही बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बड़ौली ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर चुनाव टालने की मांग की थी, बड़ौली ने इसके लिए छुट्टियों का हवाला दिया था कि वोटिंग परसेंटेज में गिरावट आ सकती है। चुनाव आयोग ने बड़ौली के पत्र पर क्या फैसला लिया, अभी ये सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया कि बीजेपी बैकफुट पर है।

 

4. हरियाणा में एक तरफ बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है तो दूसरी तरफ पहलवान बेटियों का मुद्दा। किसानों और पहलवानों की नाराजगी हरियाणा में बीजेपी के लिए एक बड़ा मुद्दा है। इसे आप विनेश फोगाट के स्वागत में दिल्ली से चरखी दादरी तक उमड़ी भीड़ को देख समझ सकते हैं।

5. किसान आंदोलन में हरियाणा के किसानों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। पंजाब विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहता है, लेकिन हरियाणा में उसके पास सत्ता है और यह देखना है कि किसानों का मुद्दा चुनाव में कितनी बड़ी भूमिका निभाता है।

6. लोकसभा चुनाव में बीजेपी हरियाणा में 5 सीटों पर आ गई। 2014 और 2019 में बीजेपी ने हरियाणा में 10 की 10 सीटें जीतीं, लेकिन 2024 में उसे पांच सीटों का नुकसान हुआ, कांग्रेस 5 सीटों पर जीत गई। ये बताता है कि बीजेपी के खिलाफ नाराजगी है और जब बीजेपी ने हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें जीती थीं, तो उसे 40 सीटें मिली थीं, जब पांच सीटें जीती है तो कितनी सीटों पर जीत मिलेगी? ये बड़ा सवाल है।

7. 2011 की जनगणना के मुताबिक हरियाणा में 7 फीसदी मुसलमान हैं और उनमें से ज्यादा नूह इलाके में रहते हैं। हरियाणा का मुस्लिम वोट इस बार गेमचेंजर बन सकता है।

8. कांग्रेस की नजर इस बार हरियाणा की सत्ता में वापसी पर है। पार्टी ने पहले से ही दलित वोटों पर फोकस कर रखा है। कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान दलित समुदाय से हैं तो गांधी परिवार की करीबी कुमारी शैलजा भी दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। शैलजा सिरसा से सांसद हैं और विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार हैं। जानकार कह रहे हैं कि कांग्रेस की ये सोची समझी रणनीति है। शैलजा के जरिए कांग्रेस दलित वोटरों को संदेश दे रही है कि उनके समुदाय का नेता सीएम बन सकता है।

9. 2014 के चुनाव में बीजेपी जब हरियाणा की सत्ता में लौटी तो उसने राज्य में जाट बनाम गैर जाट की राजनीति की। 2019 के चुनाव में उसे इसका फायदा भी मिला। लेकिन दस साल बाद पार्टी के लिए यह फैसला आत्मघाती साबित हुआ। आज हालात ये है कि जाटों के नेतृत्व वाली कोई भी पार्टी बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती है। ये भी बीजेपी के खिलाफ जा सकता है।

10. हरियाणा में जाट एक प्रभावशाली कौम है। उसका वोट निर्णायक रहता है। 2014 में मोदी लहर और 2019 में राष्ट्रवाद के सहारे बीजेपी की नैया पार हो गई थी, लेकिन इस बार बीजेपी को हरियाणा में जयंत चौधरी का समर्थन लेना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि जयंत की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल 2 से 4 सीटों पर हरियाणा में चुनाव लड़ सकती है। जयंत चौधरी के अलावा बीजेपी हरियाणा लोकहित पार्टी, हरियाणा जन चेतना पार्टी को भी सीट दे सकती है।

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