आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 588, दिनांक 10-04-2024

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अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 588, दिनांक 10-04-2024

श्लोक 3. त्रिस्ना दधि जलि मुई जलि जलि करे पकार सतगुरु सीतल, फिर मिले तो दूसरी बार न जलाना। 1 3. भीखी अग्नि बुझी नहीं, मन व्याकुलता से भरा है। वर्मि मारि सपु न मरै तिउ निगुरे कर्म कामः॥ सतगुरु दाता सव्य सबदु वसै मनि ऐ। मनु तनु सीतलु संति होइ त्रिस्ना अग्नि बूझै। प्रसन्नचित्त रहें और सदैव प्रसन्न रहें। गुरुमुखी उदासी सो करे जी सच्ची रहे लिव लाई। हरि नामि राजा अघाय चिंता का कारण नहीं है। नानक बचै नहीं अहं नाम 2। छंद जो हरि-हरि का नाम जपते हैं, उनके सभी चरण सुखी होते हैं। सबहु जन्मु तिना का ससफुलु है जिन हरि के नाम की मनि लागी भूखा। जिनके गुरु कै बचानि आराध्या तीन, भूल गये सब दुख। और संत एक अच्छा गुरसिख होता है जो पराये लोगों के बारे में नहीं सोचता। धनु धन्नू टीना के गुरु हैं जिनके अमृत फल हरि लागे मुख 6।

 

सलोक मः 3 त्रिस्ना दधि जलि मुई जलि जलि करे पुकार ॥ सतीगुर सीतल जे मिलै फिरि जलै न दूजी वर॥ 1 मैं: 3 भीखी अग्नि न जाई चिंता है मन माहि॥ वरमि मारि सपु न मरै तिउ निगुरे करम कामहि॥ सतगुरु दाता सेवइ सबदु वसै मनि ऐ। मनु तनु सितलु संति होइ त्रिसाना अग्नि ने आग बुझाई। सुखा सिरी हमेशा खुश रहेंगे. गुरुमुखी उदासी सो करे जी चाची रहि लिव ॥ चिंता चिंता का मूल नहीं है. नानक नाम छूटा नहीं। नीचे गिर गया जिनि हरि हरि नामु धिया तिनि पियादे सरब सुखा। सबहु जनमु तिना का सफलु है जिन हरि के नाम की मनि लगी भूखा॥ जिनि गुर कै बचानि आराध्या तिन विसेरि गे सभी दुखा। ते संत भले गुरसिख है जिन नहीं चिंत पराई चुखा। धनु धन्नू तिना का है हिसु अमृत फल हरी लागे मुचा ॥6॥

 

भावार्थ:- संसार प्यास से पीड़ित है, जल रहा है और मर रहा है; यदि ये ठंडे पीने वाले गुरु मिल जाएं तो दूसरी बार नहीं जलेंगे; (क्योंकि) गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! जब तक मनुष्य गुरु के वचनों से भगवान का चिंतन नहीं करता, तब तक (नाम नहीं मिलता, और) नाम के बिना किसी का भय समाप्त नहीं होता (यह भय और सहनशीलता उसे बार-बार तृष्णा के अधीन कर देती है)। . तृष्णा की अग्नि बुझती नहीं, मन में चिन्ता बनी रहती है; जैसे साँप का डंडा बंद करने से साँप नहीं मरता, वैसे ही वे मनुष्य भी मर जाते हैं जो गुरु की शरण में नहीं जाते (गुरु की शरण के बिना तृष्णा की अग्नि नहीं बुझती)। यदि हम गुरु (नाम का दान) देने वाले ने जो कहा है वह करें, तो गुरु के शब्द याद आएंगे, मन और शरीर ठंडे हो जाएंगे, इच्छा की आग बुझ जाएगी और शांति पैदा होगी मन मे क; (गुरु की सेवा में) जब व्यक्ति अहंकार को दूर कर देता है, तो सर्वोच्च सुख प्राप्त होता है। गुरु के सम्मुख वह व्यक्ति (तृष्णा से) त्याग कर देता है जो अपनी आत्मा को सच्चे नाम में जोड़े रखता है, उसे कोई चिंता नहीं होती, वह भगवान से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! भगवान के नाम का ध्यान किये बिना कोई (तृष्णा की अग्नि से) नहीं बच सकता, (नाम के बिना) जीव अहंकार में सड़ते हैं। जिन्होंने भगवान के नाम का ध्यान किया है, उन्हें सभी सुख प्राप्त हुए हैं, उनका पूरा मानव जीवन सफल हो गया है, जिनके दिल में भगवान के नाम की भूख है (अर्थात् ‘नाम’ जिसके जीवन का सहारा बन जाता है) । है)। जिन लोगों ने गुरु के वचनों से भगवान का ध्यान किया है, उनके सभी दुख दूर हो गए हैं। वे गुरसिख अच्छे संत हैं जिन्होंने (भगवान को छोड़कर) किसी और चीज की आशा नहीं की; उनके गुरु भी धन्य हैं, धन्य हैं, जिनका मुख अमर फलों से युक्त है (अर्थात जिनके मुख से प्रभु की स्तुति के शब्द निकलते हैं)।

 

भावार्थ:-संसार प्यास से जल रहा है, जल के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है; अगर ये शीतलता गुरु से मिले तो फिर मत जलना; (क्योंकि) गुरु नानक जी अपने आप से कहते हैं, हे नानक! 1. त्रिशना की तरह अग्नि नहीं बुझती, मन में चिंता टिकी है। जैसे सांप अपनी सूंड बंद कर लेने से नहीं मरता, उसी प्रकार जो लोग गुरु की शरण में नहीं जाते, वे भी ऐसा ही करते हैं। यदि (नाम देने वाला) गुरु के बताये हुए कार्य को करे तो गुरु का वचन मन में आता है, मन की ठंडक नष्ट होती है, कामना की अग्नि बुझती है और मन में शांति उत्पन्न होती है; (गुरु की सेवा में) जब मनुष्य अपना अहंकार मिटा देता है तो उसे सबसे बड़ा सुख मिलता है। गुरु के सम्मुख वह मनुष्य को (इच्छा की ओर से) त्याग देता है, जो सच्चे नाम की रक्षा करता है, उसकी उसे कोई चिन्ता नहीं होती, वह भगवान से भली-भांति संतुष्ट रहता है। गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! भगवान् का नाम लिये बिना कोई (प्यास की अग्नि से) नहीं बच सकता, (नाम के बिना) जीव अहंकार में जलते हैं। जिन्होंने भगवान का नाम स्मरण किया उनका जीवन सफल हो गया। जिन लोगों ने गुरु की वाणी से भगवान की भक्ति की है उनके सभी दुख दूर हो गए हैं। वे गुरसिख अच्छे संत हैं जिन्होंने (भगवान के बिना) या किसी और की आशा नहीं की; उनका गुरु भी धान्य है, भाग्य वाला है जिसके मुख (भगवान की सितात्-सलाह रूप) फल वाले अमरल है है है है है है है है है है है।

 

 

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