नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन, 18 की मौत, 200 से ज्यादा घायल

नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ उठे विरोध प्रदर्शनों ने सोमवार को हिंसक रूप ले लिया। सुबह से शुरू हुआ प्रदर्शन शाम तक बड़ा आंदोलन बन गया। इस दौरान 12 हजार से अधिक प्रदर्शनकारी युवाओं ने संसद भवन परिसर में घुसपैठ कर ली। सेना को स्थिति काबू करने के लिए फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें अब तक 18 लोगों की मौत और 200 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं।
नेपाल के इतिहास में यह पहला मौका है जब प्रदर्शनकारी संसद भवन के अंदर घुसे। रिपोर्ट्स के अनुसार, बड़ी संख्या में पहुंचे युवाओं ने संसद भवन के गेट नंबर 1 और 2 पर कब्जा कर लिया। इसके बाद राष्ट्रपति भवन, उपराष्ट्रपति आवास और प्रधानमंत्री आवास के आसपास के इलाकों में तुरंत कर्फ्यू लगा दिया गया। प्रशासन ने हालात बिगड़ने पर तोड़फोड़ करने वालों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए।
इस प्रदर्शन का नेतृत्व 18 से 30 साल के युवाओं ने किया, जिन्हें आमतौर पर “Gen-Z” कहा जाता है। सुबह से ही बड़ी संख्या में युवा सोशल मीडिया बैन और सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ काठमांडू की सड़कों पर उतर आए। देखते ही देखते यह संख्या हजारों में पहुंच गई। सेना और प्रदर्शनकारियों में झड़प प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर सेना और सुरक्षा बलों पर पथराव किया। जवाब में सेना ने हवाई फायरिंग की और आंसू गैस के गोले छोड़े। लेकिन भीड़ को काबू करना मुश्किल साबित हुआ। देर शाम तक राजधानी के कई हिस्सों में तनाव और हिंसा बनी रही।
नेपाल सरकार ने 3 सितंबर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब समेत 26 सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगाने का फैसला किया था। इन कंपनियों ने नेपाल के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था। मंत्रालय ने 28 अगस्त को आदेश जारी कर 7 दिन का समय दिया था, जो 2 सितंबर को खत्म हो गया। समयसीमा बीतने के बाद सरकार ने 4 सितंबर को 26 प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया। इनमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे बड़े प्लेटफॉर्म भी शामिल थे। हालांकि टिकटॉक और वाइबर जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया, क्योंकि उन्होंने समय पर रजिस्ट्रेशन करा लिया था।
नेपाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला देते हुए सोशल मीडिया कंपनियों को 7 दिन के भीतर रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश दिया था। सरकार का कहना था कि बिना रजिस्ट्रेशन के ये प्लेटफॉर्म फेक आईडी, हेट स्पीच, साइबर क्राइम और गलत सूचनाओं को बढ़ावा दे रहे थे। लेकिन जब सरकार ने बैन लागू किया, तो इसका विरोध अचानक बड़े आंदोलन में बदल गया। युवाओं का कहना है कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कर रही है और भ्रष्टाचार के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सोशल मीडिया बंद कर दिया गया। हिंसा और कर्फ्यू का असर कर्फ्यू लागू होने के बाद काठमांडू की सड़कों पर सन्नाटा पसर गया है। संसद भवन और महत्वपूर्ण स्थलों के आसपास सेना ने मोर्चा संभाल रखा है। राजधानी में इंटरनेट सेवाओं पर भी असर पड़ा है। कई जगह पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प की खबरें आई हैं। नेपाल की संसद में घुसपैठ का यह पहला मामला माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस घटना ने नेपाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक बड़ा झटका दिया है। सरकार और युवाओं के बीच संवाद न होने से स्थिति और बिगड़ सकती है।