पुलिस और जेल विभाग के बीच वेतन और वर्दी को लेकर खींचतान शुरू: डीजीपी ने उठाई आपत्ति

हरियाणा पुलिस और जेल विभाग के बीच वेतन और वर्दी को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। दरअसल, हरियाणा पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) शत्रुजीत कपूर ने जेल विभाग को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है कि जेल अधिकारियों को ऐसी वर्दी व बैज पहनने की अनुमति दी गई है, जो पुलिस अधिकारियों के समक्ष या उनसे ऊपर नजर आने वाले आते हैं। डीजीपी का तर्क है कि सेना और पुलिस दोनों में बैज और प्रतीक हमेशा पे स्केल से जुड़े होते हैं। अगर जेल विभाग में इस अनुशासन को तोड़ा गया तो यूनिफॉर्म्ड फोर्सेज़ में ‘रैंक पैरिटी’ खत्म हो जाएगी और आपातकालीन परिस्थितियों में कमांड की एकरूपता प्रभावित होगी। इस विवाद के बीच नया पेंच इस बात पर फंस गया है कि सरकार ने जेल विभाग में पुलिस के अधिकारियों की बतौर जेल सुपरिटेंडेंट पोस्टिंग भी शुरू कर दी है।
प्रदेश की सभी जेलों के सुपरिटेंडेंट्स ने एकजुट होकर गृह एवं जेल विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा को प्रेजेंटेशन दिया और पुलिस के तर्कों का पुरजोर विरोध किया। विवाद की शुरूआत 20 अगस्त को डीजीपी द्वारा लिख गए पत्र से हुई। इसमें कहा गया कि हरियाणा जेल नियम 2022 के अनुसार जेल अधिकारियों को जो बैज दिए गए हैं, वे पुलिस अधिकारियों के वास्तविक पे स्केल से कहीं ऊंचे स्तर के हैं। उदाहरण के लिए, पुलिस में ‘स्टेट एम्ब्लेम और वन स्टार’ केवल आईपीएस रैंक के पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को मिलता है, जबकि जेल सुपरिटेंडेंट्स, जो वेतनमान में डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) से भी नीचे हैं, वही बैज पहनते हैं। इसी तरह, जेल डिप्टी सुपरिटेंडेंट्स को ‘स्टेट एम्ब्लेम’ पहनने की अनुमति है, जबकि यह प्रतीक पुलिस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एडिशनल एसपी) को मिलता है, जो तीन रैंक ऊपर होता है। शुरूआत गुरुग्राम की भौंडसी और यमुनानगर जेल में डीएसपी रैंक के अधिकारियों को कमान देने से हो गई है। यानी आने वाले दिनों में विवाद और भी बढ़ सकता है।
जेल अधिकारियों की आपत्ति
डीजीपी द्वारा जताई गई आपत्ति के जवाब में हरियाणा के सभी जेल सुपरिटेंडेंट्स ने 28 अगस्त को एक संयुक्त प्रस्तुति अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह व जेल) डॉ. सुमिता मिश्रा को सौंपी। इसमें कहा गया कि पुलिस की आपत्तियां तथ्यहीन और तर्कहीन हैं। जेल अधिकारियों ने अपनी प्रस्तुति में कई दलील भी दी हैं। उनका कहना है कि वर्दी हमेशा रैंक के आधार पर निर्धारित होती है, वेतनमान के आधार पर नहीं। जेल सुपरिटेंडेंट क्लास-वन अधिकारी होते हैं और वे जेल प्रमुख के तौर पर वही भूमिका निभाते हैं, जो जिले में पुलिस अधीक्षक। यह भी तर्क दिया है कि पहचान को लेकर कोइ इसलिए नहीं है क्योंकि पुलिस और जेल दोनों के बैज पर अलग-अलग संक्षिप्ताक्षर (जैसे एचपीएस, हपू बनाम एचजे, एचजेएस) लिखे होते हैं। ऐसे में किसी भी नागरिक या अधिकारी को दोनों विभागों में फर्क करने में कठिनाई नहीं हो सकती। वास्तविक समस्या वेतन असमानता की है।
इस तरह समझें दोनों के अंतर
पुलिस विभाग में डीएसपी का एफपीएस-10, ग्रेड-पे 5400 यानी शुरूआत वेतन 56,100 रुपये है। वहीं जेल सुपरिटेंडेंट को एफपीएस-09, ग्रेड-पे 5400 और शुरुआती वेतन 53,100 रुपये। यानी जेल सुपरिटेंडेंट का वेतन पुलिस डीएसपी से भी नीचे है। पुलिस इंस्पेक्टर का एफपीएल-07, शुरुआती वेतन 44,900 रुपये है और डिप्टी, असिस्टेंट व सब-असिस्टेंड सुपरिटेंडेंट का एफपीएल-06, शुरुआती वेतन 35,400 रुपये है। जेल डिप्टी सुपरिटेंडेंट का स्तर केवल पुलिस सब-इंस्पेक्टर के बराबर है, जबकि उनके बैज एडिशनल एसपी के समान हैं। पुलिस कांस्टेबल को एफपीएल-02, शुरुआती वेतन 19,900 रुपये वहीं जेल वार्डर का वेतनमान भी बिल्कुल इतना ही, यानी 19 हजार 900 रुपये। वेतन विसंगतियों को दूर करने की मांग जेल विभाग की ओर से बरसों से की जाती रही है। यह मामला कई बार विधानसभा में भी उठ चुका है।
जेल अधिकारियों ने दिया राष्ट्रीय और राज्य समितियों की सिफारिश का हवाला
जेल अधिकारियों ने अपनी प्रस्तुति में कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय समितियों की सिफ़ारिशों का हवाला दिया है। जस्टिस एएन मुल्ला कमेटी (ऑल इंडिया कमेटी ऑन जेल रिफॉर्म्स) ने अपनी सिफारिश में कहा कि जेल स्टाफ को उनके पुलिस समकक्षों के बराबर वेतन और भत्ते मिलने चाहिए। बीपीआरएंडडी (ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट) ने 2007 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जेल स्टाफ को मनमाने तरीके से वेतन नहीं दिया जाना चाहिए। उनकी ज़िम्मेदारियां आधुनिक करेक्शनल सिस्टम में जटिल और जोखिम भरी हैं, इसलिए वेतन पुलिस विभाग के समकक्ष होना चाहिए।