8 महीने से अस्पताल का धोबी दे रहा था ड्यूटी, जालंधर सिविल अस्पताल ऑक्सीजन प्लांट फॉल्ट मामले में बड़ा खुलासा

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जालंधर। सिविल अस्पताल में न नियमों का पालन किया जा रहा है और न ही व्यवस्था ठीक करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। ऑक्सीजन न मिलने से तीन मरीजों की मौत का भी यही कारण है। अस्पताल ऑक्सीजन प्लांट पर आठ महीने से अस्पताल में तैनात धोबी की ड्यूटी लगाई जा रही थी। बड़ी बात यह है कि उसकी ड्यूटी अस्पताल प्रबंधन के कहने पर लगाई जाती थी।

वहीं, जिस ऑक्सीजन प्लांट के जरिए मरीजों को ऑक्सीजन दी जा रही थी, उसकी सात महीने से सर्विस भी नहीं करवाई गई थी। सिविल अस्पताल प्रशासन की यही लापरवाही भारी पड़ गई। ऑक्सीजन प्लांट की देखरेख मात्र दो कर्मचारी कर रहे थे। एक सुपरवाइज व एक टेक्नीशियन। रविवार को टेक्नीशियन छुट्टी पर था जिसके चलते धोबी की ड्यूटी प्लांट पर लगाई गई थी।

वहीं, एक महीने से ऑक्सीजन प्लांट के सेंसर भी बंद पड़े हुए थे। प्लांट में काम करने वाले टेक्नीशियन व सुपरवाइजर ने अस्पताल प्रबंधन को इसकी जानकारी तक नहीं दी। मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. अशोक कुमार ने कहा कि सेंसर अलार्म बंद होने का मामला ध्यान में होता तो ठीक करवाया जाता। धोबी की ड्यूटी प्लांट पर लगाए जाने की बात पर मेडिकल सुपरिंटेंडेट जवाब नहीं दे सके।

उन्होंने इतना ही कहा कि जांच में सब पता चल जाएगा। उधर, ट्रामा सेंटर में हुए हादसे के बाद अब वहां पड़े ऑक्सीजन सिलिंडरों की जांच की जा रही है। इसके अलावा अस्पताल में बिजली सहित दूसरे कार्य भी करवाए जा रहे हैं। ऑक्सीजन सिलिंडर तैयार करने वाली कंपनी के संचालक ने बताया कि प्लांट की सर्विस तीन महीने के भीतर करवानी होती है।

सिलिंडर व ऑक्सीजन प्लांट में तैयार होने वाली ऑक्सीजन की शुद्धता की बात करें तो इसमें जमीन-आसमान का अंतर होता है। ऑक्सीजन प्लांट के भीतर ट्यूब लगी होती है, जो ऑक्सीजन को शुद्ध रखती है। यह ट्यूब कीमती होती है। सर्विस के दौरान इसको बदला जाता है। उन्होंने कहा कि कई अस्पताल ऑक्सीजन प्लांट की सर्विस की तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं।

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