39 साल बाद रेप पीड़िता को मिला न्याय, हाईकोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

0

पहले बलात्कारी का जुल्म झेला और फिर न्याय के लिए अदालतों के चक्कर लगाए। यह कहानी एक महिला की है, जो साल 1986 में रेप का शिकार हुई थीं, लेकिन न्यायपालिका की तरफ से उन्हें न्याय 2025 में मिल सका। अब शीर्ष अदालत ने आरोपी पुरुष की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और जेल भेजने के आदेश दिए हैं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के केस संभालने के तरीके पर भी सवालिया निशान लगाए हैं। 1986 में नाबालिग रहीं महिला के साथ तब 21 साल के एक लड़के ने बलात्कार किया। नवंबर 1987 में उसे ट्रायल कोर्ट ने दोषी माना और सात साल की जेल की सजा सुना दी। कैसे आगे बढ़ता गया और पीड़िता अलग-अलग अदालतों के चक्कर लगाती रहीं। साल 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे बरी कर दिया। वजह दी गई कि पीड़िता समेत अभियोजन पक्ष के गवाहों की तरफ से ठोस बयान नहीं दिए गए थे।

अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस मामले के निपटने के तरीके पर भी हैरानी जताई है। साथ ही इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की है कि उसके फैसले में कई बार पीड़िता का नाम आया है। आरोपी को 4 सप्ताह के अंदर सरेंडर करने और ट्रायल कोर्ट की तरफ से दी गई बची हुई सजा काटने के निर्देश दिए गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘यह बहुत ही दुख की बात है कि इस नाबालिग बच्ची और उसके परिवार को उनके जीवन के इस दर्दनाक अध्याय को खत्म करने के लिए करीब 4 दशक तक इंतजार करना पड़ा।’ बेंच ने कहा, ‘यह सच है कि बच्ची गवाह (पीड़िता) ने उसके साथ हुए अपराध के बारे में कुछ नहीं बताया। ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड्स में है कि घटना के बारे में पूछे जाने पर ‘वी’ (पीड़िता) चुप थी। आगे पूछे जाने पर उसने सिर्फ आंसू बहाए।’ मामले की सुनवाई कर रहे जजों ने कहा कि इस बात को आरोपी के पक्ष में नहीं गिना जा सकता है। उन्होंने कहा था कि बच्ची की चुप्पी की वजह सदमा थी। न्यायाधीशों ने पीड़िता को लेकर कहा, ‘पूरे अभियोजन का भार उसके कंधों पर डालना अनुचित होगा।’ बेंच ने यह भी कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि अगर निंदात्मक बयान नहीं हैं, तो दोषसिद्धि बरकरार नहीं रह सकती। खासतौर से तब जब अन्य सबूत मौजूद हैं।

RAGA NEWS ZONE Join Channel Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताजा खबर