पीयू के छात्रों को दाखिले से पहले फिलहाल एफिडेविट देना होगा, यह प्रक्रिया हाईकोर्ट के निर्णय के अधीन होगी।

0

चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब यूनिवर्सिटी द्वारा दाखिला लेने वाले छात्रों से लिए जा रहे विवादित एफिडेविट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यूनिवर्सिटी से जवाब तलब किया है। यह एफिडेविट छात्रों को कैंपस में प्रदर्शन करने से पहले पूर्व अनुमति लेने के लिए बाध्य करता है, अन्यथा उनका दाखिला रद्द किया जा सकता है। इस शर्त को चुनौती देते हुए पूर्व पीयूसीएससी उपाध्यक्ष अर्चित गर्ग ने वरिष्ठ अधिवक्ता अक्षय भान के माध्यम से याचिका दायर की है। याचिका में यह तर्क दिया गया है कि यह एफिडेविट छात्रों के बोलने, संगठन बनाने (अनुच्छेद 19) और गरिमा से जीने के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करता है। इसके अलावा यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के भी खिलाफ है क्योंकि इसे लागू करने से पहले न किसी छात्र संगठन से सलाह ली गई, न ही कोई अधिसूचना जारी की गई। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, आपको तय करना होगा कि शिक्षा का अधिकार ज्यादा महत्वपूर्ण है या प्रदर्शन का।

जब दोनों में टकराव हो, तो शिक्षा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, दोनों एक साथ नहीं चल सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दाखिले की अंतिम तारीख 17 जुलाई तक छात्रों को यह एफिडेविट दाखिल करना होगा, लेकिन यह दाखिला कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन होगा। यानी, जब तक मामला निपटेगा नहीं, तब तक यूनिवर्सिटी इसे लागू नहीं कर सकता। वरिष्ठ अधिवक्ता अक्षय भान ने दलील दी कि अगर कोई छात्र कक्षा बाधित करता है तो कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन किसी छात्र को उसके मौलिक अधिकार यानी अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाले प्रदर्शन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। एफिडेविट की एक और आपत्तिजनक शर्त यह है कि छात्रों को किसी भी बाहरी व्यक्ति या पूर्व छात्र को धरने या विरोध में शामिल नहीं करने देना होगा, ताकि कोई अनचाही स्थिति न बने। इस पर याचिकाकर्ता का कहना है कि मैं कैंपस में आने वालों को कैसे रोक सकता हूँ? अगर कोई पूर्व छात्र सभा को संबोधित करता है, तो मेरा दाखिला क्यों रद्द हो? पंजाब यूनिवर्सिटी की ओर से पेश वकील ने अदालत में कहा कि पूर्व में कुछ प्रदर्शन उपद्रव में बदल गए थे, जैसे कि यूनिवर्सिटी में उपराष्ट्रपति के दौरे के समय।

कोर्ट ने इस पर कहा कि पिछले कुछ दशकों में यह यूनिवर्सिटीज के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है और कोई न कोई सख्त कदम ज़रूरी है। मुख्य न्यायाधीश ने मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा, मध्य प्रदेश में तो सरकार ने 10 वर्षों तक स्टूडेंट यूनियन्स पर पाबंदी लगा दी थी, जिससे यूनिवर्सिटी में शांति रही। इस पर भान ने हल्के फुहार में जवाब दिया – जितना ज्यादा दमन करेंगे, उतना ही ज्यादा विरोध होगा। अर्चित गर्ग का कहना है कि जहां यूनिवर्सिटी ने मीडिया में एफिडेविट को महज एक प्रारूप बताकर पीछे हटने का संकेत दिया था, वहीं कोर्ट में उसने इसे खुलकर बचाया और छात्रों के संगठन बनाने के अधिकार पर भी सवाल उठाए। यूनिवर्सिटी ने तो यहां तक कह दिया कि बहुत सारे संगठन हैं, इन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील अभिजीत सिंह रावले ने कहा, यह केस दाखिल न होता तो यह एफिडेविट चुपचाप हजारों छात्रों पर थोप दिया जाता। अब यह एक विवादित दस्तावेज बन चुका है और यूनिवर्सिटी को इसका संवैधानिक बचाव करना पड़ेगा।

RAGA NEWS ZONE Join Channel Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *