मां पर लगा अपने ही बच्चे को किडनैप करने का आरोप, HC ने खारिज की याचिका; टिप्पणी में कहा- माता-पिता ऐसा नहीं कर सकते

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट  ने एक अहम फैसले में कहा है कि कोई भी माता या पिता अपने ही बच्चे के अपहरण के अपराध में आरोपी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि दोनों ही माता-पिता बच्चे के समान रूप से प्राकृतिक संरक्षक होते हैं।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि “किसी घटना को अपहरण माना जाना तभी संभव है, जब नाबालिग बच्चे को ‘कानूनी संरक्षक’ की हिरासत से दूर ले जाया गया हो। मां इस परिभाषा में स्पष्ट रूप से आती है, खासतौर पर तब जब किसी सक्षम अदालत ने उसके संरक्षक होने के अधिकार को खत्म न किया हो।”
यह फैसला एक 12 वर्षीय बच्चे के चाचा द्वारा दायर बंदी प्रतिरक्षण याचिका पर आया, जिसमें आरोप लगाया गया कि बच्चे की मां उसे उसके पिता के पास से लेकर चली गई, जहां वह सामान्य रूप से रह रहा था।
इसके जवाब में मां ने कोर्ट को बताया कि बच्चे ने खुद उसे कॉल कर मदद मांगी थी, क्योंकि पिता उसे घर के नौकर के साथ अकेला छोड़ गया था। इसलिए वह ऑस्ट्रेलिया से भारत आकर बच्चे को अपने साथ ले गई।
कोर्ट को बताया गया कि माता-पिता के बीच पहले से ही बच्चे की कस्टडी को लेकर कानूनी विवाद चल रहा है और गार्जियनशिप याचिका फैमिली कोर्ट में विचाराधीन है।
कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 361 (कानूनी संरक्षक से अपहरण) का अध्ययन करते हुए कहा कि ‘कानूनी संरक्षक’ से नाबालिग को दूर ले जाना ही अपहरण की श्रेणी में आता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में असंतुष्ट माता-पिता द्वारा बच्चों की कस्टडी से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जो उचित नहीं है। न्यायालय ने यह दोहराया कि बच्चे की भलाई और हित ही कस्टडी विवादों में सर्वोपरि होते हैं। 

हिंदू माइनरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट की धारा 6 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि पांच साल तक की उम्र के बच्चों की कस्टडी सामान्यतः मां को दी जाती है, जिससे साफ है कि मां की भूमिका बच्चे के पालन-पोषण में अत्यंत महत्वपूर्ण और अनुपम मानी जाती है।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ‘मां का प्रेम निःस्वार्थ होता है और मां की गोद बच्चों के लिए ईश्वर की बनाई पालना है। इसलिए छोटे बच्चों को मां के प्रेम से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।’ 

चूंकि गार्जियनशिप याचिका अभी फैमिली कोर्ट गुरुग्राम में लंबित है, इसलिए पिता भी बच्चे की एकमात्र कस्टडी का दावा नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि 12 साल का बच्चा अपनी रहने की स्थिति को लेकर एक परिपक्व राय बना सकता है, इसलिए उसकी इच्छाओं और भले की अनदेखी नहीं की जा सकती। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और किसी भी तरह से हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

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