RBI MPC के फैसलों में डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ का जिक्र, जानें क्या बोले गवर्नर संजय मल्होत्रा

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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बुधवार को मौजूदा परिस्थितियों पर ध्यान में रखते हुए रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर कायम रखने का फैसला किया। इसके साथ ही आरबीआई ने मौद्रिक नीति रुख को भी तटस्थ बनाए रखा है। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक स्थिति के हिसाब से रेपो रेट में समायोजन को लेकर लचीला बना रहेगा। रेपो रेट, वह ब्याज दर है, जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। रेपो रेट स्थिर रहने से होम, कार समेत अन्य रिटेल लोन पर ब्याज में बदलाव होने की संभावना नहीं है। आरबीआई गवर्नर ने एमपीसी के फैसलों का ऐलान करते हुए कहा कि टैरिफ की अनिश्चितताएं अभी भी उभर रही हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इसके अलावा, उन्होंने रूस के साथ व्यापार करने की वजह से भारत पर अलग से जुर्माना लगाने की भी बात कही है। अगर ट्रंप के ये फैसले लागू होते हैं तो इससे भारतीय व्यापार पर काफी असर पड़ेगा। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। वहीं चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया गया है जबकि पहले इसके 3.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था।

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति के फैसले साझा करते हुए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि सामान्य से बेहतर दक्षिण-पश्चिम मानसून, कम मुद्रास्फीति, क्षमता इस्तेमाल में बढ़ोतरी और अनुकूल वित्तीय स्थितियां घरेलू आर्थिक गतिविधियों को समर्थन दे रही हैं। मजबूत सरकारी पूंजीगत व्यय सहित सहायक मौद्रिक, नियामकीय एवं राजकोषीय नीतियों से भी मांग में तेजी आने की उम्मीद है। आने वाले महीनों में निर्माण और व्यापार में निरंतर वृद्धि से सेवा क्षेत्र में भी गति बनी रहने के आसार हैं।

गवर्नर ने कहा, ‘‘ वृद्धि दर मजबूत है और अनुमानों के अनुसार बनी है। हालांकि, यह हमारी आकांक्षाओं से कम है। शुल्क की अनिश्चितताएं अब भी उभर रही हैं। मौद्रिक नीति का लाभ अब भी मिल रहा है। फरवरी, 2025 से रेपो दर में एक प्रतिशत की कटौती का अर्थव्यवस्था पर असर अब भी जारी है।’’ उन्होंने कहा कि घरेलू वृद्धि दर स्थिर है और मोटे तौर पर आकलन के अनुरूप ही आगे बढ़ रही है। हालांकि, मई-जून में कुछ उच्च-आवृत्ति (मसलन जीएसटी संग्रह, निर्यात, बिजली की खपत आदि) संकेतकों ने मिले-जुले संकेत दिए हैं।

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