अगर वसुंधरा राजे फ्रंट पर आईं तो क्या दीया कुमारी बैकफुट पर होंगीं,,,भाजपा की राजनीति में दो राजघरानों की महिलाओं का द्वंद

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अगर वसुंधरा राजे फ्रंट पर आईं तो क्या दीया कुमारी बैकफुट पर होंगीं
भाजपा की राजनीति में दो राजघरानों की महिलाओं का द्वंद

  • वसुंधरा राजे और दीया कुमारी दोनों ही नेता राजशाही परिवारों से हैं, और दोनों के राजपूतों से संबंध हैं जो राजस्थान जैसे राज्य में 85 विधानसभा क्षेत्रों में परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया ग्वालियर राजघराने से हैं तो दिया कुमारी जयपुर राजघराने से हैं। दोनों महिलाएं भाजपा से जुडी हैं। वसुंधरा राजे राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी है लेकिन भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने पिछले सात वर्षो से उनसे दूरी बना रखी थी। केन्द्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में पद देकर राजस्थान की राजनीति से दूर रखने की बहुत कोशिश की लेकिन वसुंधरा राजे ने राजस्थान से दूर हटने को तैयार नहीं हुईं। वसुंधरा राजे के विकल्प के रुप में भाजपा का प्लान दिया कुमारी को तैयार करना था। दिया कुमारी और वसुंधरा राजे के बीच मनमुटाव की वजह मुख्य तौर पर राजमहल होटल में वसुंधरा सरकार ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर तोडफोड करना रहा। उल्लेखनीय है कि 24 अगस्त 2016 में जेडीए ने राजपरिवार के होटल राजमहल पैलेस के एक हिस्से को अतिक्रमण मानते हुए बुलडोजर चला कर तोड दिया, साथ ही चार गेटों पर ताला जड दिया था। उस समय राज्य में वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थीं। दिया कुमारी ने तब जेडीए आयुक्त रहे शिखर अग्रवाल से तीखी बहस और विरोध किया। दियाकुमारी की मां ने वसुंधरा सरकार के खिलाफ धरना भी दिया। बाद में जयपुर की एक निचली अदालत ने जेडीए की कार्यवाही को गैर कानूनी माना और जेडीए को अपने खर्चे पर होटल का तोडा गया हिस्सा बनाने और गेट खोलने के आदेश दिए। राजमहल होटल दिया कुमारी परिवार के पास है। दिया कुमारी ने कहा था कि हमारे ही पुरखों ने राज्य सरकार को अपनी जमीनें उपयोग के लिए दी हैं जमीन के असल मालिक हम ही हैं। उस वक्त का मनमुटाव आज तक चल रहा है। 2023 के चुनाव में भाजपा की राज्य में सत्ता में आने के बाद हालांकि दिया कुमारी ने वसुंधरा राजे से अपने मतभेदों पर प्रतिक्रिया देते हुए मीडिया से कहा था कि वसुंधरा राजे से कोई मतभेद नहीं है, हम सबने मिलकर चुनाव लडा है और वसुंधरा राजे का आशीर्वाद मुझे मिला है। दिया कुमारी जयपुर घराने से संबंध रखती है जिसके बारे में भाजपा के कुछ नेता दबी जबान में कहते हैं कि यह वही घराना है जिसने मुगलों से संधि की। दिया कुमारी ने अनेक अवसरों पर हिन्दूत्व की वकालत की और स्वयं को कटटर हिन्दू दिखा कर अपने आलोचकों को जवाब भी दिया। दिया कुमारी भाजपा के लिए नया चेहरा थीं और राज परिवार से थीं इसलिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने वसुंधरा राजे को दरकिनार कर दिया कुमारी को आगे बढाया और भाजपा जब सत्ता में आई तो दिया कुमारी को उपमुख्यमंत्री पद देकर वसुंधरा राजे को संदेश दे दिया कि अब भाजपा को दूसरे राजघराने के महारानी की जरुरत नहीं है, उन्हे दिया कुमारी के रुप में नया चेहरा मिल गया है। लेकिन अब जब भाजपा सत्ता में आए दो साल पूरे कर रही है इस दौरान भाजपा को लग रहा है कि दिया कुमारी नए चेहरे के साथ आकर्षण का केन्द्र तो बनती हैं लेकिन एक परिपक्व राजनेता नहीं बन पाई हैं। दिया कुमारी को देखने भीड आ सकती है लेकिन सुनने के लिए नहीं आती। राजनीति में उस नेता का ही महत्व है जिसे सुनने भीड उमडे। इस मामले में वसुंधरा राजे आज भी अग्रणी राजनेता हैं। वसुंधरा राजे को दरकिनार करने की लाख कोशिशों के बावजूद भाजपा नेतृत्व वसुंधरा राजे को कमजोर नहीं कर सका है और ना ही दिया कुमारी कुशल राजनेता बन सकी है। लिहाजा अब भाजपा के सामने फिर से ना चाहते हुए भी वसुंधरा राजे को आगे बढाने के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा है। केन्द्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे के साथ बात की तो संघ ने भी वसुंधरा राजे से बात की। इनमें आपस में क्या बात हुई यह तो सामने नहीं आया लेकिन इस बात के बाद कुछ दिनों में वसुंधरा राजे विधानसभा पहुंच गई जहां मानसून सत्र चल रहा है। वहां वसुंधरा राजे ने हालांकि सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया लेकिन सभी भाजपा विधायकों से बात की, संघ के करीब माने जाने वाले स्पीकर वासुदेव देवनानी से मुलाकात की, इन गतिविधियों से यह संकेत तो मिल रहा है कि कहीं ना कहीं वसुंधरा राजे से कुछ सैटलमेन्ट हुआ है। दिया कुमारी को भी अंन्दर खाने पता लगा ही होगा कि उनकी प्रतिद्वंदी को सम्मान दिया जाने लगा है इसलिए इन दिनों दिया कुमारी कुछ नाराज सी दिखाई पडती हैं। ताजा प्रकरण से उनकी नाराजगी को समझा जा सकता है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने सभी जिला प्रभारियों को पांच से सात सितम्बर तक जिलों में जाकर अतिवृष्ठि से हुए नुकसान का जायजा लेना और राहत दिलाने का प्रयास करने का निर्देश था लेकिन दिया कुमारी ने इस निर्देश का पालन नहीं किया। दिया कुमारी अजमेर जिला प्रभारी है। इधर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अजमेर पहुंचे और बोराज की पाल टूटने से पानी में डूबे स्वास्तिक नगर पहंुंचें तो बात मुख्यमंत्री तक पहुंच गई। गहलोत के दौरे के तीसरे दिन दिया कुमारी को अजमेर आना पडा जो उन्होने औपचारिकता निभाकर पूरा कर लिया। अब देखना यह होगा कि किस तरह से भाजपा दिया कुमारी और वसुंधरा राजे को बैलेंस करती है। वसुंधरा राजे के दिल में दिया कुमारी के लिए कितना प्रेम या द्वेश है यह तो खुलकर सामने नहीं आया लेकिन इतना जरुर है कि वसुंधरा राजे अब फ्रंट पर आकर दिया कुमारी को बैक करने का प्रयास करना चाहेंगीं।
    राजनीतिक जीवन –
    2013 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद उसी वर्ष सवाई माधोपुर से चुनाव लडीं और किरोडीलाल मीणा को हराकर विधायक बनीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजसमन्द से कांग्रेस के देवकीनन्दन को हराकर सांसद बनीं और फिर 2023 में जयपुर के विद्याधर नगर से कांग्रेस के सीताराम अग्रवाल को हराकर विधायक बनीं। अभी वर्तमान में वो उपमुख्यमंत्री हैं।
    उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी का परिचय –
  • दिया कुमारी की प्रारम्भिक शिक्षा मॉडर्न स्कूल, नई दिल्ली और महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल, जयपुर में हुई। इसके बाद वे सजावटी कला पाठ्यक्रम के लिए लंदन चली गईं।
    वे परिवार की विरासत को सहेजने का कार्य करती हैं, जिसमें सिटी पैलेस, जयपुर, जयगढ़ दुर्ग, आमेर और दो ट्रस्ट – महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय संग्राहलय ट्रस्ट तथा जयगढ़ पब्लिक चौरिटेबल ट्रस्ट शामिल हैं। वे दो विद्यालयों (द पैलेस स्कूल और महाराजा सवाई भवानी सिंह स्कूल) तथा तीन विरासती होटलों (होटल राजमहल पैलेस, होटल जयपुर हाउस, होटल लाल महल पैलेस) के प्रबंधन में भी सक्रिय भूमिका निभाती हैं। इकलौती संतान होने के कारण वे अपनी दादी राजमाता गायत्री देवी की देखरेख में पली-बढ़ीं। राजकुमारी दीया और नरेंद्र सिंह के विवाह से उनके तीन संतान हैं – पद्मनाभ सिंह (1998 में जन्म, युवराज), लक्ष राज सिंह, और गौरवी कुमारी।
    वसुंधरा राजे का लम्बा राजनीतिक जीवन –
    वसुन्धरा राजे ने अपने जीवन का पहला चुनाव सन 1984 मे मध्यप्रदेश के भिडं लोकसभा क्षेत्र से लड़ा था जिसमे उनकी हार हुई। राजे को 1984 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया था। इसके बाद 1985-87 के बीच राजे भाजपा युवा मोर्चा राजस्थान की उपाध्यक्ष रहीं। 1987 में वसुंधरा राजे राजस्थान प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष बनीं। उनकी कार्यक्षमता, विनम्रता और पार्टी के प्रति वफादारी के चलते 1998-1999 में अटलबिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में राजे को विदेश राज्यमंत्री बनाया गया। वसुंधरा राजे को अक्टूबर 1999 में फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के तौर पर स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। भैरोंसिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें राजस्थान में भाजपा राज्य इकाई का अध्यक्ष बनी।
    2013 में गहलोत सरकार को सता से हटाने के लिए उन्होंने सुराज संकल्प यात्रा निकाली जिसका उन्हे भरपूर समर्थन मिला और वह राज्य की दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। सन 2018 में एक बार फिर वंसुधरा राजे के चुनावी रथ राजस्थान गौरव यात्रा को अमित शाह ने राजसमन्द जिले से रवाना किया जो राजस्थान की 165 विधानसभाओं से गुजरा, लेकिन इस बार वह सरकार बनाने में सफल नहीं हो सकीं।

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