हिन्दू पँचांग

🪷 *हिन्दू पँचांग* 🪷
*12 – 5 – 2025*
🪷 *विक्रम सम्वत~ 2082 ( सिद्धार्थ)*
🪷 *दिन ~ सोमवार*
🪷 *अयन ~ उत्तरायण*
🪷 *द्रिक ऋतु ~ ग्रीष्म*
🪷 *कलयुग ~ 5125 साल*
🪷 *सूर्योदय~ 05:32* (*दिल्ली*)
🪷 *सूर्यास्त ~ 19:03*
🪷 *चन्द्रोदय ~ 18:57*
🪷 *चन्द्रास्त ~ 05:31 मई 13*
🪷 *तिथि~ पूर्णिमा*
🪷 *नक्षत्र ~ विशाखा 06:17 से*
🪷 *चंद्र राशि ~ तुला*
🪷 *पक्ष ~ शुक्ल पक्ष*
🪷 *मास ~ वैशाख*
🪷 *करण ~*
*विष्टि~ पूरी रात।*
*बव ~ 09:14 तक*
🪷 *अभिजीत मुहुर्त ~*
*11:51 – 12:45*
🪷 *राहु काल ~*
*07:14 – 08:55*
🪷 *गण्डमूल ~*
*14- मई 21:47 से, 16- मई 16:07 तक*
🪷 *पंचक~*
*20- मई 7:35 से, 24- मई 13:48 तक*
🪷 *दिशा शूल ~ पूर्व*
🪷 *योग ~*
*वरीयान योग : यदि कोई मंगलदायक कार्य करने जा रहे हैं तो वरियान नामक योग में करें, निश्तिच ही सफलता मिलेगी। हालांकि इस योग में किसी भी प्रकार से पितृ कर्म नहीं करते हैं।*
🪷 *यात्रा ~*
*सोमवार*
*दुग्ध या उससे बने पदार्थ या खीर खाकर अथवा दर्पण में देखकर, मस्तक पर तिलक कर यात्रा करें। दोनों उपाय कर यात्रा करें तो शुभ संभावना में बहुत वृद्धि होती है। पान खाकर निकलें या फिर किसी पौधे में पानी डालकर निकलें तो यात्रा चार गुना अधिक शुभ होती है।*
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*पूजा-पाठ के कई नियम होते हैं जिनका पालन करना अक्सर मुश्किल होता है। कई बार नियमों की जानकारी न होने से तो कई बार समय के अभाव में पूजा में कुछ कमियां रह जाती हैं।*
*पूजा में हुई गलतियों के लिए हमें भगवान से क्षमा मांगने के लिए क्षमायाचना मंत्र बोला जाता है। जब हम अपनी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगते हैं, तभी पूजा पूरी होती है।*
🪷 *आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।*
*पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥*
*मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।*
*यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥*
*मंत्र का अर्थ~*
*हे ईश्वर मैं आपका “आवाह्न” अर्थात् आपको बुलाना नहीं जानता हूं न विसर्जनम् अर्थात् न ही आपको विदा करना जानता हूं मुझे आपकी पूजा भी करनी नहीं आती है। कृपा करके मुझे क्षमा करें। न मुझे मंत्र का ज्ञान है न ही क्रिया का, मैं तो आपकी भक्ति करना भी नहीं जानता। यथा संभव पूजा कर रहा हूं, कृपा करके मेरी भूल को क्षमा कर दें और पूजा को पूर्णता प्रदान करें ।मैं भक्त हूं मुझसे गलती हो सकती है, हे ईश्वर मुझे क्षमा कर दें। मेरे अहंकार को दूर कर दें। मैं आपकी शरण में हूं।*
*वैसे पूजा में क्षमा मांगने की परंपरा काफी पुरानी है। यह प्राचीन परंपरा संदेश देती है कि हमसे जब भी कोई गलती हो जाए तो हमें तुरंत क्षमा मांग लेनी चाहिए। इससे हमारा अहंकार खत्म होता है।*
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