Himachal news: हाईकोर्ट के पांच आदेशों से चिंता में पड़ी सुखविंदर सरकार, कर्ज लेकर चल रहा रूटीन खर्च तो कैसे चुकाएंगे भारी-भरकम देनदारी

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हिमाचल में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार गहरी आर्थिक मुसीबत में फंस चुकी है. हिमाचल सरकार का ये संकट हाईकोर्ट के फैसलों से पैदा हुआ है. कर्ज लेकर किसी तरह रूटीन का खर्च चला रही सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के लिए कर्मचारियों व पेंशनर्स के वित्तीय लाभ देना कठिन हो रहा है. उधर, हाईकोर्ट ने सरकार के आर्थिक संकट वाले किसी भी तर्क को नहीं सुना है. हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि यदि किसी कर्मचारी या पेंशनर्स के वित्तीय लाभ तय नियमों व कानून के तहत आते हैं तो उन्हें हर हाल में देना ही होगा. हाल ही के दिनों में कुल पांच मामलों में हाईकोर्ट ने ऐसे सख्त निर्देश दिए हैं.

 

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अनुबंध अवधि को सेवाकाल में गिनने और उनके वित्तीय लाभ देने से जुड़े फैसले दिए हैं. सरकार के लिए चिंता की बात है कि ये रकम ब्याज सहित देने के लिए कहा है. सबसे ताजा मामले में हाईकोर्ट ने छठे वेतन आयोग के वित्तीय लाभ देने से जुड़े मामले में हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव तक को नोटिस जारी किया है. बड़ी बात ये है कि नोटिस अवमानना से जुड़ा है.

 

इन सारे मामलों के तथ्यों और देनदारी की काउंटिंग सहित आगामी कदम पर सरकारी मशीनरी बड़ी मीटिंग करने जा रही है. ये मीटिंग अगले हफ्ते बुलाई गई है. राज्य सरकार के वित्त सचिव देवेश कुमार इस बैठक में अन्य प्रशासनिक सचिवों से हाईकोर्ट के सख्त आदेशों के बाद पैदा हुई स्थिति पर चर्चा करेंगे. इस मीटिंग में वित्तीय देनदारी से जुड़े सारे रिकार्ड रखे जाएंगे. कितनी देनदारी बनती है और उसे कैसे चलाया जाएगा, इसका प्रारंभिक खाका तैयार कर सरकार को भेजा जाएगा. मीटिंग के लिए उन विभागों के शाखा अधिकारियों को भी बुलाया गया है, जिनके विभागों के ये मामले हैं.

सीनियोरिटी से लेकर एरियर व अनुबंध अवधि से जुड़े हैं मामले: हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के कुछ ज्वलंत मसले हैं. इनमें सीनियोरिटी, अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिने जाने, एरियर, नियमितिकरण आदि से जुड़े मामले हैं. ताजा मामला नए वेतन आयोग के वित्तीय लाभ का है. इस मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फिर से सख्त शब्दों में कहा है कि आर्थिक संकट का नाम लेकर सरकार पेंशनर्स के वित्तीय लाभ नहीं रोक सकती. हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि आर्थिक संकट होने पर भी तय वित्तीय लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता. यही नहीं, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो टूक कहा है कि वो सेवानिवृत कर्मचारियों के वित्तीय लाभ इंस्टॉलमेंट में नहीं दे सकती. यानी ये लाभ एकमुश्त देने होंगे. यही कारण है कि सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. सरकार के पास खजाने में इतना पैसा नहीं है कि भारी-भरकम वित्तीय देनदारी एकमुश्त चुका सके.

सुरेंद्र राणा केस में रोया था आर्थिक संकट का रोना: हिमाचल प्रदेश सचिवालय से रिटायर सेक्शन ऑफिसर सुरेंद्र राणा के केस में 7 जुलाई को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो टूक आदेश दिए कि पेंडिंग एरियर को हर हाल में चुकाना होगा. इसी केस में राज्य सरकार ने अदालत में कहा था खजाने में पैसा नहीं है. अदालत ने आदेश दिया कि ऐसा तर्क मान्य नहीं है. सुरेंद्र राणा केस में हाईकोर्ट ने सितंबर 2023 में आदेश दिया था कि जनवरी 2016 से अप्रैल 2028 तक का वेतन और पेंशन का एरियर सुरेंद्र राणा को जारी किया जाए. राज्य सरकार अदायगी नहीं कर पाई तो राणा ने अवमानना का केस कर दिया. एरियर का भुगतान छह फीसदी ब्याज सहित किया जाना है. ये भी एक बड़ी देनदारी बनेगी.

बालो देवी केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश: आठ साल की नियमित सेवा के बाद पेंशन से जुड़ा बालो देवी केस भी राज्य सरकार के लिए देनदारी लेकर आया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से आदेश हुए थे. ये मामला पांच जुलाई का है. मामले के अनुसार यदि किसी दिहाड़ीदार यानी डेली वेजर्स ने आठ साल की नियमित सेवा पूरी कर ली है तो उसे पेंशन का हक मिलेगा. ऐसे में कई दिहाड़ीदार इस फैसले से लाभ उठाएंगे. दरअसल, बालो देवी के पति सिंचाई व जनस्वास्थ्य विभाग (अब जल शक्ति विभाग) में कार्यरत थे. उनका नियमित कार्यकाल आठ साल का बनता था. हाईकोर्ट से बालो देवी केस में आठ साल का नियमित कार्यकाल पूरा होने की पुष्टि के बाद पेंशन के लिए कंसीडर करने का आदेश राज्य सरकार को दिया गया था. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जो खारिज हो गई. अब इस मामले में भी भारी देनदारी सिर पर आएगी.

शीला देवी केस ने बदला कर्मचारियों का भविष्य: शीला देवी नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई कर हिमाचल के हजारों कर्मियों की तकदीर बदली है. शीला देवी ने अकेले संघर्ष किया और अनुबंध अवधि के सेवाकाल को पेंशन के लिए गिने जाने वाले फैसले की सूत्रधार बनी. शीला देवी के पति आयुर्वेदिक डॉक्टर थे. वे पहले आठ साल तक अनुबंध पर सेवाएं देते रहे. फिर नियमित होने के बाद तीन साल का सेवाकाल पूरा किया ही था कि उनका ड्यूटी के दौरान दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया था. अनुबंध अवधि के सेवाकाल को पेंशन के लिए कंसीडर करने को लेकर शीला ने संघर्ष किया था. इसका लाभ हजारों कर्मचारियों को मिलेगा. ये भी सरकार पर भारी वित्तीय देनदारी होगी.

शीला देवी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जून महीने में राज्य सरकार ने ऑफिस मेमो जारी कर दिया है. इसी तरह ताज मोहम्मद व लेखराज बनाम हिमाचल सरकार मामले में अनुबंध अवधि पर नियुक्ति की डेट से वरिष्ठता से जुड़े वित्तीय लाभ देने का केस भी है. पांचवां केस डॉ. सुनील कुमार बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल का है. इसमें भी संशोधित वेतनमान व एरियर के भुगतान के आदेश आ चुके हैं. फिलहाल, इन सभी मसलों पर 22 जुलाई को मीटिंग में मंथन होगा. राज्य सरकार को इन फैसलों से उपजी देनदारी के लिए बड़ी रकम का इंतजाम करना होगा.

 

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