हिमाचल में वेतन के लिए अब 5 सितंबर पर टिकी नजर, पेंशन के लिए भी बरकरार रहेगा इंतजार
हिमाचल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कर्मचारियों को पहली तारीख को वेतन नहीं मिला है. अब वेतन के लिए सरकारी कर्मचारियों को पांच सितंबर तक इंतजार करना होगा. पांच सितंबर को भी वेतन दोपहर बाद ही खाते में क्रेडिट होने के आसार हैं. केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की 520 करोड़ रुपए की रकम 5 सितंबर को राज्य सरकार की ट्रेजरी में आएगी. फिर ट्रेजरी से बैंक में पैसे आने की प्रक्रिया में समय लगता है. यदि पांच सितंबर को ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई तो वेतन के लिए एक दिन और इंतजार करना होगा. हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के एक महीने के वेतन की रकम 1200 करोड़ रुपए के करीब बनती है. इसी तरह पेंशन का एक महीने का अमाउंट 800 करोड़ रुपए बनता है. कुल मिलाकर सरकार को एक महीने के वेतन और पेंशन के लिए 2000 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. वेतन 5 सितंबर को नहीं आया तो अगले दिन यानी 6 सितंबर को संभावना होगी और पेंशन के लिए संभव है कि 10 सितंबर तक प्रतीक्षा करनी पड़े. अब सरकार इस संकट से कैसे पार पाएगी, इसे समझते हैं.
मान लो राज्य सरकार सैलरी व पेंशन के लिए लोन लेना चाहे तो क्या विकल्प हैं? राज्य सरकार की इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6200 करोड़ रुपए है. इसमें से राज्य सरकार 3900 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है. अब कुल 2300 करोड़ की लोन लिमिट बची है. इस 2300 करोड़ रुपए से सरकार को दिसंबर महीने तक काम चलाना है. दिसंबर से मार्च 2025 की तिमाही के लिए केंद्र से अलग से लोन लिमिट सेंक्शन होगी. अब दिसंबर तक का समय निकालने के लिए भी सरकार को कठिनाई झेलनी पड़ेगी. कारण ये कि केवल और केवल वेतन व पेंशन के लिए 2000 करोड़ की रकम चाहिए. अब 2300 करोड़ रुपए की लोन लिमिट को देखें तो इस हिसाब से यदि सरकार इसे सारा का सारा लेने के लिए भी आवेदन करे तो ये एक महीने के वेतन व पेंशन के खर्च को ही संभाल पाएगा. ऐसे में सरकार को केंद्र से आने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के पैसे का सहारा है, लेकिन उसमें भी समस्या ये है कि अकेले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पेंशन का 800 करोड़ का लोड नहीं उठा सकेगी.
राज्य में आर्थिक संकट की ये नौबत आई कैसे? इसके कारणों पर गौर करें तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में टेपर फार्मूले (जिस फार्मूले के तहत ग्रांट हर महीने डिक्रीज होती है) से हर महीने ग्रांट कम हो जाती है. दूसरा लोन लिमिट में केंद्र ने कटौती कर दी है. आलम ये है कि इस वित्त वर्ष में यानी 2024-25 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1800 करोड़ की कटौती हुई है. अगले साल सिचुएशन और खराब होगी, जब कटौती 3000 करोड़ हो जाएगी. फिर राज्य सरकार ने ओपीएस लागू की है. इस कारण न्यू पेंशन स्कीम यानी एनपीएस के राज्य के कंट्रीब्यूशन के कारण मिलने वाला 2000 करोड़ का लोन भी हाथ से खिसक गया. इससे सरकार के खजाने पर एकदम से बोझ आ गया.
चूंकि राज्य सरकार के पास कोई खास विकल्प नहीं है, लिहाजा हर महीने पहली तारीख को मिलने वाली सैलरी व पेंशन के लिए समय आगे खिसक सकता है. ये समय महीने की पहली तारीख के बजाय 6 तारीख हो सकता है. सरकार के खुद के टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू से हर महीने 1100 से 1200 करोड़ रुपए के करीब रकम जुटती है. इसमें वैट, शराब की बिक्री आदि से रेवेन्यू आता है. इस तरह कुल मिलाकर 520 करोड़ रुपए रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट, 1200 करोड़ टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू व कुछ रकम लोन की जुटा कर सरकार को वेतन व पेंशन का जुगाड़ करना होगा.