हरियाणा सरकार और भाजपा की पूर्व सांसद सुनीता दुग्गल को हाई कोर्ट का नोटिस, अपरहरण से जुड़ा है मामला

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 पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार और सिरसा की पूर्व भाजपा सांसद सुनीता दुग्गल को एक याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें पंचायत समिति रतिया के चेयरमैन को अपहरण के झूठे मामले में फंसाने का आरोप लगाया गया है। सुनीता दुग्गल के पति आईपीएस अधिकारी हैं। याचिका में दावा किया गया है कि चेयरमैन केवल कृष्ण पर इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाने और हाल ही में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में दुग्गल का विरोध करने के लिए उनके खिलाफ बदला के प्रयास से ऐसा किया गया, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस को चेयरमैन केवल कृष्ण के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले के तहत कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया है। जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने पंचायत समिति रतिया के चेयरमैन केवल कृष्ण की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए। चेयरमैन के खिलाफ फतेहाबाद जिले के रतिया के गांव लाली निवासी नवीन कुमार के अपहरण के आरोप में एक जनवरी 2025 को एफआइआर दर्ज की गई थी।
मामले की सुनवाई के दौरान नवीन ने अदालत को बताया कि मौजूदा एफआइआर झूठी है और उसका कभी किसी ने अपहरण नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा एफआइआर दर्ज करने का उद्देश्य केवल याचिकाकर्ता केवल कृष्ण को उनके खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव से हटाना था। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि रतिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते समय भाजपा उम्मीदवार सुनीता दुग्गल ने विधानसभा चुनाव में याचिकाकर्ता से समर्थन मांगा था। मना करने पर दुग्गल ने कथित तौर पर उन्हें पंचायत समिति के अध्यक्ष पद से हाथ धोने सहित गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। याचिकाकर्ता द्वारा दूसरे उम्मीदवार का समर्थन करने के बाद उनकी दुश्मनी बढ़ गई। दुग्गल ने बदला लेने की कसम खाते हुए कथित तौर पर अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर याचिकाकर्ता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की साजिश रची।
वकील ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआइआर दुग्गल के इशारे पर दर्ज की गई थी, ताकि याचिकाकर्ता और अन्य पंचायत समिति सदस्यों पर अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए दबाव बनाया जा सके। एफआइआर को रद करने की मांग करते हुए केवल कृष्ण के वकील ने कहा कि पुलिस राजनीतिक विरोधियों के साथ मिलकर याचिकाकर्ता को बैठक में शामिल होने और अपने राजनीतिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी सदस्य से संपर्क करने से रोकने की कोशिश कर रही है।
सभी को सुनने के बाद हाई कोर्ट का यह विचार था कि याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने के लिए विशेष परिस्थितियां हैं। आमतौर पर यह अदालत एफआइआर को रद करने की याचिका में पुलिस को कोई भी बलपूर्वक कदम उठाने से रोकने के लिए कोई अंतरिम राहत नहीं देती, लेकिन इन परिस्थितियों में जहां याचिकाकर्ता उन विशेष परिस्थितियों को दिखाने में सक्षम है, यह अदालत हमेशा न्याय के हित में और कानून की प्रक्रिया के किसी भी दुरुपयोग को रोकने के लिए हस्तक्षेप करेगी। इसलिए निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा।

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