आप प्रतिनिधिमंडल ने पंजाब विश्वविद्यालय के पुनर्गठन पर राज्यपाल से मुलाकात की

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चंडीगढ़: आम आदमी पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने बृहस्पतिवार को यहां राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया से मुलाकात की और केंद्र की उस अधिसूचना को वापस लेने की मांग की जिसमें पंजाब विश्वविद्यालय के शासी निकायों – सिंडिकेट और सीनेट – के पुनर्गठन का प्रस्ताव है। पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा, सांसद मालविंदर सिंह कंग, गुरमीत सिंह मीत हेयर, विधायक जगदीप कंबोज गोल्डी और देविंदरजीत सिंह लाडी धोस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। आप, कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के कई नेता पंजाब विश्वविद्यालय के शासी निकायों के पुनर्गठन के केंद्र के कदम का विरोध कर रहे हैं, जो कि 28 अक्टूबर की अधिसूचना के माध्यम से किया गया था।

अधिसूचना पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम, 1947 में संशोधन करती है, जिसके तहत सरकार की शीर्ष संस्था सीनेट के सदस्यों की संख्या 90 से घटाकर 31 कर दी गई है तथा इसके कार्यकारी निकाय, सिंडिकेट के लिए चुनाव समाप्त कर दिए गए हैं और सीनेट के स्नातक निर्वाचन क्षेत्र को समाप्त कर दिया गया है। बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए चीमा ने भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र सरकार पर विश्वविद्यालय पर ‘‘पूर्ण नियंत्रण’’ पाने के इरादे से विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक व्यवस्था को ‘‘नष्ट’’ करने का प्रयास करने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह अधिसूचना लोकतांत्रिक व्यवस्था को नष्ट करने के लिए जारी की गई है।’’ उन्होंने कहा कि इस अधिसूचना से न केवल पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) प्रभावित होगा बल्कि पंजाब के लगभग 200 संबद्ध कॉलेज भी प्रभावित होंगे।

राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन में आप ने कहा, “केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की 28 अक्टूबर की अधिसूचना ने पंजाब विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सीनेट और सिंडिकेट को एकतरफा रूप से भंग कर दिया और सीनेट का आकार घटाकर मात्र 31 कर दिया।” इसमें कहा गया है, “यह कठोर कदम संस्थागत स्वायत्तता और लोकतांत्रिक शासन की जड़ पर प्रहार करता है, जिसे पंजाब विश्वविद्यालय ने सात दशकों से अधिक समय तक गर्व के साथ कायम रखा है।” पार्टी ने कहा कि चार नवंबर की तारीख वाली अधिसूचना एक रणनीतिक विराम के अलावा कुछ नहीं है, जिसमें कार्यान्वयन को “स्थगित” करने का दावा किया गया है।

इसमें कहा गया है, “यह मूल विनाशकारी ढांचे को बरकरार रखता है, राहत का भ्रम पैदा करता है, जबकि केंद्र की किसी भी समय अपनी इच्छा थोपने की शक्ति को सुरक्षित रखता है। इस तरह का दोहरापन जनता के विश्वास को खत्म करता है और पंजाब के लोगों से संबंधित एक संस्था का धीरे-धीरे गला घोंटने की स्पष्ट मंशा को उजागर करता है।” राजनीतिक नेताओं और प्रदर्शनकारी छात्रों के बढ़ते दबाव के बीच केंद्र ने 28 अक्टूबर की अपनी अधिसूचना के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित अन्य ने अधिसूचना को पूरी तरह वापस लेने की मांग की है।

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