नए साल में आरबीआई से राहत की संभावनाएं बढ़ीं: ब्याज दरों में और नरमी के संकेत, रुपये की स्थिरता पर रहेगा फोकस
महंगाई दर में ऐतिहासिक गिरावट और मजबूत आर्थिक वृद्धि के माहौल में साल 2026 के दौरान भारतीय रिज़र्व बैंक से अतिरिक्त नीतिगत समर्थन की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि, घरेलू मुद्रा रुपये में लगातार कमजोरी आरबीआई के लिए सबसे बड़ी चिंता बनी रहेगी।
खुदरा महंगाई में आई बड़ी राहत और अर्थव्यवस्था की मजबूत रफ्तार ने इस संभावना को बल दिया है कि Reserve Bank of India आने वाले समय में भी विकास को समर्थन देने वाले कदम उठा सकता है। वहीं दूसरी ओर, हाल के महीनों में रुपये में जारी गिरावट ने मुद्रा प्रबंधन को केंद्रीय बैंक की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर ला दिया है।
2025 में दरों में बड़ी कटौती
रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंची खुदरा महंगाई के बीच आरबीआई ने वर्ष 2025 में हुई छह मौद्रिक नीति समीक्षाओं में से चार में नीतिगत दरों में कुल 1.25 प्रतिशत की कटौती की। गवर्नर Sanjay Malhotra ने फरवरी में अपनी पहली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) बैठक से ही आर्थिक वृद्धि को गति देने के उद्देश्य से दरों में कमी की दिशा अपनाई। इसके बाद जून में भी कम महंगाई के चलते रेपो दर में 0.50 प्रतिशत की उल्लेखनीय कटौती की गई।
गवर्नर मल्होत्रा ने पद संभालने के एक वर्ष पूरे होने पर मौजूदा आर्थिक हालात को भारत के लिए एक दुर्लभ संतुलित दौर बताया। उनके अनुसार, अमेरिका के टैरिफ और वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों जैसे प्रतिकूल कारकों के बावजूद देश की विकास दर आठ प्रतिशत से ऊपर रही, जबकि महंगाई एक प्रतिशत से नीचे बनी रही। हालांकि, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि आगे चलकर वृद्धि की रफ्तार कुछ धीमी हो सकती है और महंगाई धीरे-धीरे आरबीआई के चार प्रतिशत लक्ष्य के करीब लौट सकती है।
रुपये की गिरावट बनी बड़ी चुनौती
साल 2025 में आरबीआई के 90 वर्ष पूरे हुए, लेकिन इसी दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये का 90 के स्तर के करीब पहुंचना केंद्रीय बैंक के लिए गंभीर चुनौती बन गया। आरबीआई का कहना है कि उसका विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किसी खास स्तर को बचाने के लिए नहीं, बल्कि अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए होता है।
कमजोर रुपये के बीच केंद्रीय बैंक ने साल के पहले नौ महीनों में 38 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार बाजार में उतारा। विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये का प्रबंधन आने वाले समय में भी आरबीआई के लिए कठिन बना रहेगा। साल की शुरुआत से अब तक रुपये में करीब 4.79 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।
महंगाई के अनुमानों पर उठे सवाल
चालू कीमतों पर जीडीपी वृद्धि को लेकर उठ रही चिंताओं के बीच गवर्नर मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि आरबीआई के फैसले वास्तविक जीडीपी के आधार पर लिए जाते हैं, जिसमें महंगाई का प्रभाव घटा दिया जाता है। हालांकि, वास्तविक महंगाई के आंकड़े आरबीआई के अनुमानों से कम रहने के कारण पूर्वानुमान क्षमता पर सवाल भी खड़े हुए। इस पर डिप्टी गवर्नर Poonam Gupta ने कहा कि आकलन प्रक्रिया में किसी तरह का प्रणालीगत पक्षपात नहीं है।
बैंकों पर पड़ा असर
रेपो दर में कटौती और उधारी लागत में कमी की उम्मीदों के चलते बैंकों को भी कुछ झटके लगे। शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में गिरावट और मुख्य आय घटने से बैंकिंग क्षेत्र प्रभावित हुआ। हालांकि, प्रणाली में पर्याप्त नकदी बनाए रखने और नियामकीय ढील जैसे कदमों ने असर को आंशिक रूप से संतुलित किया।
ग्राहकों की शिकायतों पर विशेष जोर
पूरे वर्ष के दौरान आरबीआई ने कई नियामकीय सुधार लागू किए। अक्टूबर की मौद्रिक नीति घोषणा में 22 नियामकीय उपायों की घोषणा की गई, जिनमें से कुछ कदम केंद्रीय बैंक के लिए अपेक्षाकृत नए माने गए। इनमें भारतीय कंपनियों के वैश्विक अधिग्रहण के लिए बैंकों को वित्तपोषण की अनुमति देना भी शामिल है। गवर्नर मल्होत्रा ने ग्राहकों के प्रति संवेदनशीलता और शिकायतों के त्वरित समाधान पर विशेष जोर दिया, जो उनके विभिन्न बयानों और भाषणों में साफ दिखाई दिया।
