पीयू में धरने पर बैठे छात्रों को हाईकोर्ट की नसीहत: “कक्षाओं में लौटें, शिक्षा को दें प्राथमिकता”
पंजाब यूनिवर्सिटी में लंबे समय से लंबित सीनेट चुनावों की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि चुनाव से पहले कैंपस में “शैक्षणिक गतिविधियां” सामान्य होनी चाहिए। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यूनिवर्सिटी की शैक्षणिक व्यवस्था को “चुनावी आकांक्षाओं की वेदी पर बलि नहीं चढ़ाया जा सकता।” कोर्ट ने अंततः याचिका का निपटारा करते हुए उम्मीद जताई कि चुनाव कार्यक्रम यथाशीघ्र घोषित किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कैंपस में जारी छात्र आंदोलन पर गंभीर टिप्पणी करते हुए छात्रों को कक्षाओं में लौटने की सलाह दी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आपके माता-पिता ने आपको पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में भेजा है। ज्ञान अर्जन आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए।” कोर्ट ने याचिका खारिज करने से पहले मौखिक तौर पर यह भी कहा कि यदि छात्र सात दिन तक नियमित रूप से कक्षा लगाएंगे, तभी मामले की आगे सुनवाई होगी। केंद्र की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) सत्य पाल जैन ने बताया कि हाल की विवादित अधिसूचनाएं—जिन्होंने सीनेट संरचना बदली थी—वापस ले ली गई हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें “3.50 लाख रजिस्टर्ड ग्रैजुएट वोटर्स” पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और चंडीगढ़ में फैले हुए हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने तर्क दिया कि चुनावों में देरी “दुर्भावनापूर्ण” है और अधिकारियों ने जानबूझकर प्रक्रिया रोकी है। हाल ही में दाख़िल एक अन्य आवेदन में भी यही आरोप दोहराए गए कि चुनाव टालकर यूनिवर्सिटी की “लोकतांत्रिक और विरासतपरक संरचना” को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। अदालत ने कहा कि वह चांसलर को “शीघ्र निर्णय” लेने के लिए कह सकती है, लेकिन कानून में निर्धारित समयसीमा से बाहर कोई बाध्यकारी निर्देश जारी नहीं कर सकती। इसके साथ ही याचिका निपटा दी गई।
यूनिवर्सिटी में एक साल से चुनावों में देरी
याचिकाकर्ताओं, जो पूर्व सीनेटर हैं, ने दलील दी कि 2024 के अंत से यूनिवर्सिटी बिना अपनी दो वैधानिक संस्थाओं, सीनेट और सिंडिकेट, के चल रहा है, जिससे “सारे प्रशासनिक अधिकार” वाइस चांसलर तक सीमित हो गए हैं। अदालत को बताया गया कि दिसंबर 2023 से जून 2024 के बीच छह बार चुनाव कार्यक्रम चांसलर को भेजा गया, लेकिन मंज़ूरी नहीं मिली, जबकि पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट में किसी मंज़ूरी का प्रावधान ही नहीं है।
मध्य प्रदेश का उदाहरण: पांच साल चुनाव नहीं, पर अकादमिक गतिविधियां सामान्य
बेंच ने टिप्पणी कर बताया कि मध्य प्रदेश में पांच वर्षों तक यूनिवर्सिटी चुनाव नहीं हुए, फिर भी शैक्षणिक गतिविधियां बिना व्यवधान जारी रहीं। अदालत ने पूछा कि “यहां प्राथमिकता शिक्षा है या चुनाव?” जिस पर याचिकाकर्ता ने जवाब में कहा कि परीक्षाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन चुनाव कार्यक्रम घोषित करने की अंडरटेकिंग ही आंदोलन को शांत कर सकती है।
