भारतवासियों की सामूहिक पहचान है हिन्दुत्व
चिरसनातन काल से चले आ रहे भारतीय चिंतनप्रवाह का ही आधुनिक नाम हिन्दुत्व है। भारत की धरती पर जन्म लेने वाले साम्प्रदाय : जैन, बौद्ध, सिख, शैव, वैष्णव, लिंगायत इत्यादि हिन्दुत्व की ही सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिभाषाएं अथवा अभिव्यक्तियाँ हैं। भारत में रहने वाली हिन्दू पूर्वजों की संताने ईसाई तथा मुसलमान भी हिन्दुत्व की विशाल परिधि में ही आते हैं। संक्षेप में हिन्दू, मुसलमान और ईसाई इत्यादि सभी भारतीयों की सांझी सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक धरोहर (विरासत) है हिन्दुत्व।
आज भारत में जितने भी जातीय मजहबी और क्षेत्रीय झगड़े दिखाई दे रहे हैं, वे सभी हिन्दुत्व अर्थात भारतीयता की ढीली पड़ रही पकड़ के कारण ही है। इसीलिए तो जाति, मजहब, क्षेत्र पर आधारित राजनीतिक दल भी हिन्दुत्व के व्यापक दृष्टिकोण से दूर भागते हैं। लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति, साम्यवाद की धर्म विहीन विचारधारा और पश्चिम की भौतिकतावादी चकाचौंध वाली संस्कृति हावी होती जा रही है। पश्चिम की राजनीतिक एवं भौतिकवादी परिभाषाओं से हिन्दुत्व की उन सनातन और शाश्वत अवधारणाओं को समझा, पढ़ा और पढ़ाया जा रहा है जिनका सत्ता की राजनीति और भोगविलास से कोई भी वास्ता नहीं है। यही वजह है कि 11 सितंबर 1995 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में हिन्दुत्व को भारतीय उपमहाद्वीप की जीवन शैली, भारत की पहचान और सर्वकल्याणकारी जीवन दर्शन स्वीकारते हुए इसे मजहब से पूर्णतया भिन्न बताया तो अनेक राजनीतिक दलों और संगठनों ने न्यायालय के फैसले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। कैसी विडंबना है कि भारत की इस प्राचीन, वैज्ञानिक और सर्वस्पर्शी चिंतनधारा को सर्वोच्च न्यायालय ने तो पहचान लिया, परंतु अपने जातिगत और राजनीतिक स्वार्थों में डूबे लोगों के गले में यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसला नहीं उतरा। इस प्रकाश के दलों और संस्थाओं के अज्ञान और सीमित मानसिकता ने हिन्दुत्व की विशालता को टुकड़ों में बांटने के राष्ट्रविरोधी कृत्यों को अपनी राजनीतिक और सामाजिक गितिविधियों का आधार बना रखा है। परिणामस्वरूप ‘सर्वेभवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ जैसे उच्च मानवतावादी विचारों से परिपूर्ण हिन्दुत्व को राजनीतिक गलियारों में अपनी ही परिभाषा खोजनी पड़ रही है। वास्तव में हिन्दुत्व को न समझने की समस्या अथवा मानसिकता धर्म और साम्प्रदाय के धालमेल से ही उपजी है। धर्म को जब रिलीजन कहा गया तो इसका संप्रदाय हो जाना स्वाभाविक ही था। इसीलिए हिन्दुत्व भी साम्प्रदायक बना दिया गया।