कर्नाटक में निजी श्रेणी की नौकरियों में 100 फीसदी स्थानीय आरक्षण की तैयारी, कैबिनेट ने पास किया बिल

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निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के कर्नाटक सरकार के फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है. सरकार के इस फैसले की कई उद्योगपति आलोचना कर रहे हैं. दो दिन पहले राज्य सरकार ने एक विधेयक को मंजूरी दी थी. इसके तहत निजी उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में प्रबंधकीय पदों पर स्थानीय लोगों को 50 प्रतिशत और गैर-प्रबंधकीय पदों पर 75 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है. बिल की आलोचना होने के बाद राज्य के उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने कहा कि बिल पास होने से पहले सभी भ्रम दूर कर लिए जाएंगे.

बिल में क्या है?

यह विधेयक 15 जुलाई को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में पारित किया गया था. बिल का नाम है- ‘कर्नाटक राज्य उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार विधेयक, 2024’। बिल इसी विधानमंडल सत्र में पेश किया जा सकता है.

 

कैबिनेट के फैसले की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि राज्य में निजी क्षेत्र की नौकरियों में ग्रुप-सी और ग्रुप-डी के 100 फीसदी पद स्थानीय लोगों से भरे जाएंगे. हालांकि, आलोचना के बाद मुख्यमंत्री ने उस पोस्ट को हटा दिया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिल के ड्राफ्ट में ग्रुप-सी और ग्रुप-डी की नौकरियों में 100 फीसदी आरक्षण का कोई जिक्र नहीं है. बाद में श्रम मंत्री संतोष लाड ने भी मीडिया से कहा कि 100 फीसदी आरक्षण की बात गलत है. विधेयक में केवल प्रशासनिक पदों के लिए 50% आरक्षण और गैर-प्रबंधन पदों के लिए 75% आरक्षण का प्रावधान है।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के लोग लंबे समय से निजी और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। इसी महीने कन्नड़ संगठनों ने सरकारी और प्राइवेट नौकरियों में सरोजिनी महिषी रिपोर्ट लागू करने के लिए रैली निकाली. पूर्व केंद्रीय मंत्री और कर्नाटक की पहली महिला सांसद सरोजिनी महिषी की अध्यक्षता वाली एक समिति ने 1984 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें 58 सिफ़ारिशें थीं. इसमें सिफारिश की गई कि स्थानीय लोगों को केंद्र सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों की ग्रुप-सी और ग्रुप-डी नौकरियों में 100 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए।

 

 

 

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