आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 715

अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 715, दिनांक 22-03-2024
टोडी महला 5. गरबी गहलरो मुद्रो हियो रे। हे महाराज, मेरी माता! देहर निइ मोहि फाक्यो रे। रहना घणो घणो घणो सद नागाचै बिनु लहने कथै पायो रे॥ महाराज रो गथु वाहु सिउ लुभारियो निहभगारो भाई संजोयो रे।1। मन की सुनो, साधु-संतों का दर्शन करो, सब लोग भूल जाओ, अतीत सब भूल जाओ। जा को लहणो महाराज रे गथरियो जन नानक गर्भसि न पौरियो रे।2.2.19।
टोडी महल 5. गरीब, शोर मचाने वाला, मूडी। नमस्कार, मेरे प्रभु. देहर निइ मोहि फाकिओ रे। रहना बहुत सारे बहुत सारे लोग महाराज रो गथु वाहु सिउ लुभदियो निहभगड़ो भहि संजियो रे ॥1॥ सुनि मन सेख साधु जन सगलो थारे सगले प्रचत मिटियो रे॥ जा को लहणो महाराज री गथदियो जन नानक गर्भवती न पूदियो रे ॥2॥2॥19॥
मूर्ख हृदय अहंकार में डूबा रहता है। यह हृदय मछली की भाँति (काँटे में फँसी हुई मछली की भाँति) महाराज (भगवान्) की माया से फँस गया है। रहना (मोहित हृदय) सदैव बहुत कुछ (माया) माँगता है, परन्तु भाग के बिना वह उसे कहाँ से प्राप्त कर सकता है? यह महाराज का (प्रदत्त) शरीर है, इसलिये (मूर्ख प्राणी) इस पर मोहित रहता है॥ निभगा मनुष्य (अपने मन को) कामना की अग्नि से जोड़े रखता है।।1।। रे मन! सभी ऋषियों के उपदेश सुनो, (उसके आशीर्वाद से) तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जायेंगे। हे दास नानक! महाराजा के खजाने में से जिन खण्डों में कोई उपलब्धि लिखी हुई है, वह जून में नहीं आती। 2.2.19.
मूर्ख का हृदय अहंकार से क्रोधित होता है। यह हृदय मछली की भाँति (मछली के काँटे की भाँति) महाराज (प्रभु) के प्रेम में फँस गया है। (मोह में फंसा हुआ) वह हमेशा (प्यार का) बहुत कुछ मांगता है, लेकिन भाग्य के बिना, वह इसे कहां से प्राप्त कर सकता है? यह महाराज का (दिया हुआ) शरीर है, इसी (मूर्ख प्राणी) पर वे मोहित रहते हैं। भाग्यहीन मनुष्य अपना मन अग्नि में लगाये रखता है। रे मन! सभी संतों के उपदेश सुनने से (इस आशीर्वाद से) तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जायेंगे। हे दास नानक! ॥2॥2॥19॥