MDU में उत्पीड़न मामले ने पकड़ा तूल, आरोपी अधिकारी का भिवानी, तो पीड़िता का खानपुर तबादला

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रोहतक। MDU में ऑडिट ब्रांच के अधिकारी पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप के मामले में आरोपी को बचाने की कोशिश की जा रही है। यही कारण है कि बुधवार को उक्त अधिकारी के भिवानी वि.वि. में तबादले के आदेश जारी कर दिए गए। वहीं उक्त अधिकारी पर आरोप लगाने वाली पीड़िता कर्मचारी का भी सोनीपत के खानुपर वि.वि. में तबादला किया गया है। इन आदेशों के जारी होने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरोपी को बचाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं और इस मामले में लीपापोती हो रही है।

 कार्रवाई में जानबूझ कर की गई देरी

सूत्रों की मानें तो सीधे तौर पर इस मामले में शिकायत मिलते ही कार्रवाई करने की जिम्मेदारी पुलिस की बनती थी, क्योंकि ये दोनों ही कर्मचारी MDU के नहीं, बल्कि लोकल ऑडिट विभाग के हैं, जोकि MDU में ऑडिट ब्रांच में तैनात हैं। यूनिवर्सिटी के कर्मचारी न होने के कारण MDU की कमेटी का इस विषय में कोई दखल नहीं बनता है। किसी महिला द्वारा शारीरिक शोषण की शिकायत पर उसके बयानों के मुताबिक ही तुरंत कार्रवाई करनी होती है, लेकिन पुलिस ऐसा करने की बजाय MDU की उत्पीड़न कमेटी द्वारा कार्रवाई करने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रही है।

अधिकारी के तबादले के साथ दब जायेगा मामला

दूसरी तरफ MDU की कमेटी भी लिखित में शिकायत मिलने की बाट जोहती रही। इस दौरान आरोपी को बचने का पूरा समय मिल गया और उसने अपने आकाओं से सांठ-गांठ कर रातों-रात MDU से अपना तबादला करवा लिया। ऐसे में MDU प्रशासन के साथ-साथ पुलिस की कार्रवाई भी संदेह के दायरे में आ गई है। आरोपी अधिकारी के तबादले के साथ ही यह मामला पूरी तरह से दब जाएगा और आरोप लगाने वाली कर्मचारी के हिस्से केवल बदनामी ही आएगी। वहीं जिस अफसर पर सैक्सुअल हासमैंट का आरोप लगा है, उसे शिक्षण संस्थान में लगाना कितना सही है, यह भी अपने आपमें एक बड़ा सवाल है। हैरानी की बात तो यह है कि इस मामले में पुलिस से लेकर MDU तक के सभी अधिकारी मौन धारण किए हुए हैं।

ऑडिट ब्रांच के कर्मचारी EC के निर्णय पर भी लगाते हैं अड़ंगा

ऑडिट विभाग के सूत्रों के अनुसार लोकल ऑडिट ब्रांच के बहुत सारे कर्मचारी अपने दायरे में रहकर काम नहीं करते और फाइलों पर अनावश्यक ऑब्जेक्शन लगाते हैं। इसमें ब्लैकमेल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यूनिवर्सिटी अपने आप में स्वायत संस्था (ऑटोनॉमस बाँडी) है, जो स्वयं के नियम बनाकर निर्णय स्वयं ले सकती है, जिसमें सरकार का भी कोई दखल नहीं होता। इतना 1 ही नहीं, एग्जीक्यूटिव काऊंसिल (ई.सी.) यूनिवर्सिटी की सुप्रीम बॉडी होती है, जिसके द्वारा लिए गए निर्णय अंतिम और सर्वमान्य होते हैं, लेकिन ऑडिट ब्रांच के कर्मचारी यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काऊंसिल (ई.सी.) द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय पर भी अनावश्यक ऑब्जेक्शन लगाते हैं, जोकि विवाद का कारण बनते हैं।

बिना ऑफिस मैनुअल के करते हैं ऑडिट

लोकल ऑडिट विभाग के कर्मचारी यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक मामलों में अपनी लिमिट से बाहर जाकर दखल करते हैं और बिना ऑफिस मैनुअल के ऑडिट करते हैं, जोकि विवाद बनते हैं। यूनिवर्सिटी में भर्ती एवं प्रशासनिक मामले ऑडिट के प्रिव्यू में नहीं आते हैं, फिर भी लोकल ऑडिट विभाग के कर्मचारी इनमें अपना अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं जो विवाद का कारण बनते हैं। यूनिवर्सिटी की एक्जीक्यूटिव काऊंसिल द्वारा लिए गए निर्णय को केवल राज्यपाल ही पलट सकते हैं, क्योंकि वह इसके कुलाधिपति होते हैं।

अन्य विश्वविद्यालयों के कर्मचारी भी करते हैं मनमानी

MDU ही नहीं प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी लोकल ऑडिट विभाग के कर्मचारी मनमानी करते हैं और विवाद का कारण बनते हैं। MDU पूर्व में भी लोकल ऑडिट विभाग के कर्मचारियों द्वारा अनावश्यक ऑब्जेक्शन लगाने को – लेकर विवादों में रहा है। प्रदेश के नामी राजकीय शिक्षण संस्थान में इस तरह एक महिला अधिकारी द्वारा उसके सीनियर अधिकारी पर शारीरिक शोषण के आरोप लगाना बहुत ही गंभीर विषय है। इस तरह के मामलों में तत्परता से कार्रवाई होनी चाहिए। चंडीगढ़ के लोकल ऑडिट विभाग के निदेशक राजेश गुप्ता ने कहा कि दोनों ही अधिकारियों के तबादले बुधवार को कर दिए गए हैं। ये तबादले इस विवाद के चलते किए गए हैं या अन्य कोई और कारण है, इस विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अधिकारियों के तबादले सरकार अपने स्तर पर करती है।

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