बाघ बढ़ने की बजाय कम : छत्तीसगढ़ में टाइगर का कुनबा लगातार बढ़ती चुनौती

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देश के सबसे सघन जंगल वाले राज्य छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या बढ़ाना चुनौती बनता जा रहा है, यहां आलम यह है कि बीते कुछ सालों में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद बाघ बढ़ने की बजाय कम हो रहे हैं। राज्य में तीन टाइगर रिजर्व है, जिन्हें सीता नदी उदंती, इंद्रावती और अचानकमार टाइगर रिजर्व के तौर पर जाना जाता है। इन तीनों ही टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 5555 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है। यहां वर्ष 2014 में 46 बाघ हुआ करते थे, मगर 2018 की गणना में बाघों की संख्या घटकर सिर्फ 19 रह गई।

 

 

सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि तीनों टाइगर रिजर्व में तीन वर्षों की अवधि में 183 करोड रुपए खर्च किए गए। यह राशि बाघों के संरक्षण, उनके लिए बेहतर सुविधाएं विकसित करने के मकसद से जंगल में वृद्धि और शाकाहार जंतुओं के इजाफे पर खर्च किए गए। एक तरफ जहां यह राशि खर्च की गइर्, वही दूसरी ओर बाघों की संख्या कम होती जा रही है। सरकार की ओर से जारी आंकड़े बताते हैं कि तीन साल में जहां 183 करोड़ रुपए खर्च किए गए, वही भाजपा के शासन काल के तीसरे कार्यकाल में चार साल में 229 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, उसके बावजूद बाघों की संख्या कम हुई थी।

 

बाघों पर खर्च हो रही राशि की गणना की जाए तो हर साल 60 करोड़ रुपये का खर्च आता है, एक माह में पांच करोड़। देश के अन्य टाइगर रिजर्व में एक बाघ पर हर साल औसतन एक करोड़ रुपये खर्च होता है। इस तरह इस राज्य में खर्च होने वाली राशि के लिहाज से 60 बाघ होने चाहिए। लेकिन यहां सिर्फ 19 बाघ ही पाए गए थे। उसके बाद दो बाघों की मौत भी हो गई। राज्य के इन तीन टाइगर रिजर्व में से दो, इंद्रावती व सीता नदी उदंती उन इलाकों में हैं, जहां माओवादियों का प्रभाव है। इन स्थितियों में वन विभाग का अमला भी दोनों टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से बचता है।

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