जिसकी भक्ति जिसकी पूजा उसका ज्ञान जरूरी है निरंकार की अनुभूति केवल सत्गुरू द्वारा ही संभव

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रागा न्यूज़, मनीमाजरा।

मनीमाजरा, 12 मार्च जिसकी भक्ति जिसकी पूजा उसका ज्ञान जरूरी है। निरंकार की अनुभूति केवल सत्गुरू द्वारा प्रदत ब्रह्मज्ञान से ही संभव है।यह भाव श्री राकेश मुटरेजा, मैंबर इंचार्ज ब्रांच प्रशासन, राजस्थान व प्रकाशन विभाग द्वारा मौली जागरां स्थित सन्त निरंकारी सत्संग भवन में आयोजित जोनल स्तर के विशाल निरंकारी संत समागम के दौरान व्यक्त किए गए।

जीवन में ज्ञान प्राप्त करने की चार अवस्थाएं होती है। उन्होंने इन अवस्थाओं को एक उदाहरण के साथ समझाया। पहली अवस्था श्रवण ज्ञान होती है। जिस प्रकार एक बच्चे का जन्म होता है तो वे केवल श्रवण मात्र से मां , पिता व अन्य रिश्तों का उच्चारण करना आरंभ कर देता है। दूसरी अवस्था पठन ज्ञान की होती है। जिसमें एक उदहारण दिया की यदि किसी का गला सूख रहा हो तो उसकी प्यास तो पानी से बुझती है। पानी हाईडोजन व ऑक्सीजन से मिलकर बनता है। वह इसका पठन करता है वो उसको फिर भी पीता नहीं है। वे मात्र इसका पठन करता है। पठन के पश्चात् देखता है ओर कहता है यह पानी है। परन्तु अंतिम अवस्था ही आन्नद की अवस्था होती है। जब वह इसको पीता है। इसका अनुभव करता है। ठीक इसी प्रकार निरंकार को जानकर उसका अनुभव करके ही वास्त्विक आन्नद को प्राप्त किया जा सकता है और इसका स्थायी आन्नद प्राप्त करने के लिए सेवा, सिमरन व सत्संग करना नितांत जरूरी है।

उन्होंने सत्गुरू माता जी का शुक्राना करते हुए कहा कि जिसको इस निरंकार का बोध हो जाता है उसके पश्चात् जीवन में कोई भी उलझन नहीं रहती। परन्तु मन है वो उलझनों में उलझता ही है तो ऐसे में उसका हल केवल ओर केवल एक नाम आधार ही है। उन्होंने कहा कि जब 2016 में नोटबंदी हुई तो लंबी लंबी कतारों में खड़े होते हुए हम कितने परेशान होते थे। किंतु यदि हम विचार करें की 84 लाख की लंबी कतार में हम सब खड़े है और तब हमारा नंबर आएगा। ऐसी अनुभूति होते ही निरंकार का शुक्राना निकलता है कि शुक्र है कि उसने इस मानुष जीवन को ज्ञान देकर सार्थक बना दिया है।

इसी प्रकार ब्रहमविद्या से ऊंची कोई विद्या नहीं है। इस निरंकार का विधान कभी अधूरा नहीं हो सकता। जरूरत है हमें अपने नजरिए को बदलने की।

चंडीगढ़ जोन के जोनल इंचार्ज श्री ओ0पी0 निरंकारी जी ने श्री राकेश मुटरेजा जी व दिल्ली से आए हुए प्रतिनिधियों एवम दूर दूर से आई हुई साध संगत का शुक्राना व अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि भक्ति के सही मायने तो प्रेम है। प्रेम द्वरा ही एकत्व, भाईचारे के संदेश से जन-जन को जोड़ा जा सकता है।

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