कांग्रेस की ‘गलत नीति’ के चलते पंजाब के निजी ड्रग रिहैब सेंटर बंद होने के कगार पर

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रिहैब बंद होने का अर्थ है, रोगियों एवं प्रतीक्षारत लोगों के लिए परेशानी

नीति लागू की गई तो 2000 से अधिक लोग बेरोजगार हो जाएंगे

पंजाब ड्रग रिहैबिलिटेशन सेंटर्स यूनियन (पीडीआरसीयू) ने मुख्यमंत्री भगवंत मान से मांग की है कि उन्हें कांग्रेस शासन के दौरान बनाई गई बाधक नीति से मुक्त किया जाए, जिसके चलते निजी क्षेत्र के नशामुक्ति रिहैब केंद्र बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। यूनियन चाहती है कि मुख्यमंत्री इस नीति की समीक्षा करें और समीक्षा लंबित रहने तक इसके कार्यान्वयन पर रोक लगाएं।

इस समस्या के समाधान के लिए पीडीआरसीयू द्वारा गठित एक विशेष समिति के सदस्यों ने इस मुद्दे के बारे में यहां एक प्रेस कांफ्रेंस की। समिति के सदस्य ड्रग रिहैब केंद्रों के मालिक हैं और इनमें से ज्यादातर पहले खुद नशे के आदी थे, जो कि अब मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। सदस्यों ने कहा कि पीडीआरसीयू ने स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से नीति को रद्द करने के लिए कई अनुरोध किये है।

बताया गया कि माननीय उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप पर 2011 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, ड्रग रिहैबिलिटेशन सेंटर्स में इन-हाउस काउंसलरों की सुविधा होना आवश्यक है।

समिति के एक वरिष्ठ सदस्य, कुणाल लखनपाल ने कहा, “2020 में पंजाब की पिछली कांग्रेस सरकार ने 2011 के उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों की अनदेखी करते हुए निजी प्लेयर्स द्वारा चलाए जा रहे ड्रग रिहैबिलिटेशन सेंटर्स पर एक नई नीति लागू की थी। उसके अनुसार हर रिहैबिलिटेशन सेंटर में एक स्थायी मनोचिकित्सक, एमबीबीएस डॉक्टर और एक नर्स होनी चाहिए। यह अतार्किक है क्योंकि इन केंद्रों पर कोई दवा नहीं दी जानी है। हम डिटॉक्सीफिकेशन के बाद लोगों को भर्ती करते हैं। ऐसे लोगों की काउंसलिंग की जानी है। आइडिया यह है कि उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाए ताकि वे फिर से ड्रग्स का शिकार न हों।”

समिति के एक सदस्य, अंगद सिंह ने कहा, “नई नीति से संचालन लागत बढ आएगी, जिसे हम पूरा नहीं कर सकते, क्योंकि हम छोटे केंद्र चलाते हैं और रोगियों से शुल्क भी बहुत कम लिया जाता है, क्योंकि ज्यादातर प्रभावित परिवार बहुत गरीब होते हैं।
उल्लेखनीय है कि नीति के तहत कुछ प्राइवेट रिहैबिलिटेशन सेंटर्स को बंद करने के नोटिस पहले ही दिए जा चुके हैं। कुछ तो बंद भी हो गए हैं। ऐसे मामले भी हैं जहां रिहैबिलिटेशन सेंटर्स पंजाब से स्थानांतरित होकर पड़ोसी राज्यों में स्थापित किए जा चुके हैं।

समिति के एक सदस्य, संजीव शर्मा ने कहा, “यदि नीति अपने मौजूदा स्वरूप में लागू होती है, तो 74 प्राइवेट रिहैबिलिटेशन सेंटर्स बंद हो जाएंगे।”
“बंद होने पर रिहैबिलिटेशन में रहने वाले हजारों रोगियों को परेशानी होगी और पुनर्वसन की प्रतीक्षा कर रहे लोगों को भी मझधार में छोड़ दिया जाएगा। प्राइवेट रिहैबिलिटेशन सेंटर्स के बंद होने से 2000 से अधिक लोग बेरोजगार हो जाएंगे,” जरनैल सिंह, समिति के एक अन्य सदस्य ने कहा।
रिहैबिलिटेशन सेंटर्स में उपचार के कारण ठीक हुए कई पूर्व-ड्रग एडिक्ट्स ने भी रिहैबिलिटेशन सेंटर्स के महत्व के बारे में बताया।

समिति के एक सदस्य, सतनाम सिंह ने कहा, “नए संशोधन के अनुसार, हमें पंजाब मेडिकल काउंसिल (पीएमसी) में पंजीकृत 520 से अधिक मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होगी, और हमारे पास इतने मनोचिकित्सक हैं नहीं।”
कमेटी के एक सदस्य, अमरजीत सिंह ने कहा, “जरूरत सिर्फ एक विजिटिंग साइकेट्रिस्ट और एक एमबीबीएस डॉक्टर की है, जिन्हें आवश्यक होने पर कॉल किया जा सके।”
समिति के सदस्य, गुरविंदर सिंह रिंपी ने कहा, “रिहैबिलिटेशन सेंटर्स के संबंध में 2020 की नीति को रद्द कर दिया जाना चाहिए। इसकी बजाय 2011 के माननीय उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू किया जाना चाहिए। पंजाब की आप सरकार को रिहैबिलिटेशन सेंटर्स के लिए दिल्ली मॉडल अपनाना चाहिए।

“नई नीति में कहा गया है कि पंजाब में प्रत्येक प्राइवेट रिहैबिलिटेशन सेंटर में न्यूनतम 500 वर्ग गज की जगह होनी चाहिए, जिसके लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होगी। आश्चर्य की बात यह है कि नीति बायो वेस्ट लाइसेंस की भी बात करती है, जबकि इन केंद्रो में किसी भी तरह का कोई बायो वेस्ट उत्पन्न नहीं होता है, फिर ऐसे लाइसेंस की क्या आवश्यकता है?” एक अन्य सदस्य अमरिंदर न पूछा।

पंजाब में नशामुक्ति केंद्रों की चार श्रेणियां हैं। श्रेणी 1 केंद्रों में मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होती है, श्रेणी 2 में ओपीडी होती है जहां एमबीबीएस डॉक्टरों की जरुरत होती है। डी -एडिक्शन- कम- रिहैब सेंटर्स की तीसरी श्रेणी में डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों की जरूरत है, जबकि ड्रग रिहैबिलिटेशन सेंटर्स श्रेणी 4 में आते हैं।

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