आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 694

0

🌺 अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 694, दिनांक 19-03-2024 🌺

धनासरि भगत रविदास जी की सतगुर प्रसाद॥ हम सारी दिनु दयालु ना तुम सारी अब पतियारु किजै। बचनि तोर मोर मनु मनै जन कौ पूर्णु दिजै।1। रमैया के कारण मैं बलि चढ़ने जा रहा हूं. कारण कवन अबोल रहना जनम बहुत जन्मा, माधौ ने तेरे लिए ये जनम लिखा। रविदास ने कहा, “आसा लगि जीवौ चीर, भयो दरसनु देख। 2.1″।

धनासरी, भगत रवि दास जी കിക്ക് सतीगुर प्रसाद हम സിരിന്നു ഡിയലു നാന്നു സായ സായ പിട ്ടിരു ഥിക്കി ॥ बचनि तोर मोर मनु मने जन कौ पुरन दीजे॥1॥ रमैया के कारण बलिदानी बनो, बलिदानी बनो। कावन अबोल क्यों है? रहना बहुत सारे लोग तितर-बितर हो गए. कहि रविदास आस लागि जीवु चिर भइयो दरसनु देखके॥2॥1॥

 

(हे माधो!) मेरे जैसा दीन कोई नहीं, और तेरे समान दयालु कोई नहीं, (मेरी दरिद्रता का) अब मोह करने की जरूरत नहीं। (हे सुंदर राम!) मेरे सेवक को यह उत्तम सिद्दक प्रदान करें कि मेरा मन आपकी प्रशंसा के शब्दों से भर जाए।1. हे सुन्दर राम! मैं सदैव आपका आभारी हूँ; तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते? रविदास जी कहते हैं- हे माधो! कई जन्मों से मैं तुमसे (कृपया, मेरे) इस जन्म को तुम्हारी याद में अलग कर चुका हूँ; बहुत दिन हो गये तुम्हें देखे हुए, मैं (दर्शन की) आशा में रहता हूँ।।2.1।।

(हे माधो, मेरे जैसा कोई गरीब नहीं है, और तुम्हारे जैसा कोई दयालु नहीं है, (मेरी गरीबी का) अब चुकाने की कोई जरूरत नहीं है (हे सुंदर राम!) यह उपहार मेरे सेवक को दे दो, और मुझे अपनी दयालुता दो सलाह। की बातें करने में ही रह रहे हैं। 1. हे सुंदर राम! मैं आपका आभारी हूं, आप मुझसे बात क्यों नहीं करते? (कृपया, मेरा) यह जन्म तेरी याद में है; तेरा दीदार की बहुत सारी बातें हो गई हैं , (दर्शन की) आस में जीवित ॥2॥1॥

 

 

RAGA NEWS ZONE Join Channel Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताजा खबर