आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 500

अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 500, दिनांक 12-12-2023
गुजरी महला 5. कभु हरि सिउ चीतु न लियो॥ धन्धा करत बिहानि औदाहि गुण निधि नामु न गयो।1। रहना कौड़ी कौड़ी जोरत कप्ते अनिक जुगति करि धायो॥ बिसरत प्रभ केते दुक गनिह महा मोहनी खइयो।।1।।
कब हू=कभी. सीना=साथ। न जोड़ें = न जोड़ें। बिहाणी = उत्तीर्ण। उम्र =उम्र. गुणी निधि नामु = हरि का नाम, सभी गुणों का खजाना। 1. जोरात=जोड़ना, संग्रह करना। कपटे = कपटपूर्वक। जुगति = विधि। धायो = चारों ओर घूमना। केटे = कितने? गनिया = गिना जा सके। महा मोहनी = मन की सबसे बड़ी धोखेबाज (माया)। खाओ = आध्यात्मिक जीवन खाओ।1.
(माया-मोहय जीव) कभी भी अपना मन भगवान के (चरणों में) नहीं लगाता। (माया के लिए) दौड़ते-भागते (उसकी) उम्र निकल जाती है, सब गुणों का खजाना भगवान का नाम नहीं जपता।।1।। रहना वह एक-एक करके धोखा देकर माया को इकट्ठा करता रहता है और तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर माया की खातिर इधर-उधर भागता रहता है। भगवान का नाम भूल जाने के कारण उसे अनेक दुःख प्राप्त होते हैं। मन को मोहित करने वाला प्रबल भ्रम उसके आध्यात्मिक जीवन को खा जाता है।1.