आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 668

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अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 668, दिनांक 07-12-2023

 

धनासरी महला 4. कलिजुग का धर्म कहु तुम भाई किव छूट हम छुटकाकी॥ हरि हरि जपु बेदि हरि तुलाहा हरि जापियो तेरै तरकी।1। हरि जी राखु लझु हरि जन क्या हरि हरि जपनु जपवहु अपना हम मागी भक्ति एकाकी। रहना हरि के सेवक से हरि प्यारे जिन जपियो हरि बचनकी॥ लेखा चित्र गुप्ति, जिनने लिखा सब लघु योग, क्या बचा।।2।। हरि के संत जपियो मनि हरि हरि लागी संगति साध जन की। दिनियारु सुरु त्रिस्ना अग्नि बुजानि शिव चारियो चंदु चंदकी।3। आप बहुत बढ़िया व्यक्ति हो। जन नानक कौ प्रभ किरपा किजै करि दासनि दास दासकी।4.6।

 

धनसारी महल 4 कलिजुग का धरमु काहु तुम भय किव छुतह हम छुटकाकी॥ हरि हरि जपु बेदि हरि तुलाहा हरि जपियो तारै तारकि ॥1 हर किसी के लिए शर्म की बात है हरि हरि जपनु जपवहु अपना हम मागी भगति इकाकी॥ रहना ॥ लेखा चित्रा गुपति जो लिखिया सभ मखति जम की बाकी॥2॥ हरि संत जपें दिनियारु सुरु त्रिस्ना अग्नि बुजानि शिव चारियो चंदु चंदकी ॥3॥ तुम वद पुरख वद अगम अगोचर तुम आपे आपे आपकी ॥ जन नानक कौ प्रभ किरपा की जय करि दासनि दास दासकी॥4॥6॥

 

 

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