आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 620

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सोरठी महला 5. मेरे सतगुरु रक्षक बने। धरि कृपा प्रभ हठ रक्षणा हरि गोविदु नवा निरोआ।1। रहना तपु गया प्रभी आप मिटाया जन की लाज कै। सदसंगति के सब फल सतगुरू पाये, त्याग किये।।1।। हल्तु पलटु प्रभ दोनों सवार हमरा गुनु अव्गुनु न बिचर्या॥ अटल बचाणु नानक गुरू सफल बनायेंगे।2.21.49.

 

सोरठी महल 5 मेरे सतगुरु मेरे अभिभावक बने। धरि कृपा प्रभ हाथ दे रखिअ हरि गोविदु नवा निरोआ॥1॥ रहना तपु गया प्रभी आपि मित्तइया जन की लाज राखै॥ साध संगति ते शब फल पाय सतिगुर कै बलि जानि॥1॥ हल्तु पलटू प्रभु दोनों हमारे पुण्य पर सवार हुए और कष्ट नहीं हुआ। अटल बचनु नानक गुरु तेरा सुफल करु मसातकी धारिया ॥2॥21॥49॥

 

धारी = धारण करना प्रभी = प्रभु। नवा निरोआ = पूर्णतः स्वस्थ।1. प्रभी = प्रभु। आदर = सम्मान। पर = से, से। बलि जाई=मैं बलि जाई।1. हल्टू = {अत्र} ये लोग। पलटू {परत्र} लेकिन लोग। हमरा = हम प्राणियों का। अटल = कभी न डगमगाने वाला। नानक = हे नानक! गुरु = हे गुरु! यशस्वी = फलदायक, धन्य। कारु = हाथ मस्तकी = मस्तक पर।2.21.49।

 

अरे भइया! मेरे गुरु (मेरे) सहायक बन गए हैं, (गुरु की शरण के आशीर्वाद से) भगवान ने (बालक हरि गोबिंद) को बचाने के लिए (अपना) हाथ दिया है, (अब बालक) हरि गोबिंद पूरी तरह से मिल गए हैं। 1 है रहना (हे भाई! बालक हरिगोविन्द का) ज्वर उतर गया है, प्रभु ने स्वयं उतार लिया है, प्रभु ने अपने सेवक की लाज रख ली है। अरे भइया! गुरु के सानिध्य से (मैंने) सभी फल प्राप्त किये हैं, मैं (सदा) गुरु को ही (केवल) बलि चढ़ता हूँ।1. (हे भाई, यदि कोई मनुष्य भगवान की गोद भी पकड़ लेता है, तो भी) भगवान उसे इस लोक और परलोक दोनों में सवारी देते हैं। ईश्वर हम प्राणियों के किसी भी गुण या गुण को ध्यान में नहीं रखता। नानक कहते हैं कि हे गुरू! आपका (यह) वचन कभी मिटने वाला नहीं है (कि ईश्वर परलोक में रहने वालों का संरक्षक है)। हे गुरू! आप अपना आशीर्वादपूर्ण हाथ (इन प्राणियों के) माथे पर रखें। 2.21.49.

 

भावार्थ:-हे भाई! मेरा गौरव (मेरा) सही है, (बागवान करा कर के (सावन) के के के के बालक हारी गुबिंद है है) रहा है।1. (हे भाई! हरि गोबिंद के बच्चे) तापमान नीचे आ गया है, भगवान ने नीचे ला दिया है, भगवान ने अपने सेवक की लाज रख ली है। अरे भइया! गुरु की संगति से (मैंने) सभी फल प्राप्त किये हैं, मैं (सदा) गुरु को ही त्याग करता हूँ।।1।। (हे भाई, जिसने भगवान का हाथ पकड़ लिया, उसका बस इतना ही) यह संसार और स्वर्ग भगवान का दिया हुआ है, हम भगवान के किसी भी गुण या विशेषता को अपने मन में नहीं रखते हैं। हे नानक! (बोलें-) हे गुरू! आपकी (यह) बात कभी टलने वाली नहीं है (परमात्मा ही जीव का लोक परलोक में है)। हे गुरू! आप अपना धन्य हाथ (हमारी आत्माओं के) माथे पर रखें। 2.21.49.

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