आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 500

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अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, भाग 500, दिनांक 23-10-2023

गुजरी महला 5.

 

कभु हरि सिउ चीतु न लियो॥ धन्धा करत बिहानी औदहि गुण निधि नाम न गाओ।1। रहना कौड़ी कौड़ी जोरत कप्ते अणिक जुगति कारि धायो॥ बिसरत प्रभ केते दुक गनिह महा मोहनी खइयो।।1।। करहु अनुग्रहहु सामि उपार्जन मे गन्हु न मोहि। गोबिंद दयाल कृपाल सुख सागर नानक हरि सरनायो।2.16.25।

 

गुजरी महला 5.

 

(हे भाई! माया-मोहय जीव) कभी भी अपना मन भगवान के चरणों में नहीं लगाता। (माया के लिए) दौड़ने से, (उसकी) उम्र निकल जाती है, सभी गुणों का खजाना, भगवान का नाम नहीं लिया जाता है। 1. रहो। चारों ओर दौड़ता है भगवान का नाम भूल जाने के कारण उसे अनेक दुःख प्राप्त होते हैं। मन को मोहित करने वाली प्रबल माया उसके आध्यात्मिक जीवन को खा जाती है। 1. हे नानक! (अख) हे गोबिंद! हे दया! हे कृपाल! हे सुख के सागर! हे हरि! मैं आपके घर आया हूं. हे मेरे परमदेव! मुझ पर दया करो, मेरे कर्मों पर ध्यान मत दो. 2.16.25.

 

 

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