आस्था | अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अनुच्छेद 890

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रामकली महल 5. कोटि जाप तप विसराम रिद्धि बुद्धि सिद्धि सुर ज्ञान अनिक रूप भोग रसाई। गुरुमुखी नामु निमख रिदाय वसई।।1।। हरि का नाम क्या है? कीमत नहीं बता सकता.1. रहना योद्धा का धैर्य पूरा हुआ. सहज समाधि ध्वनि गहन गंभीर। सदा मुक्तु तां कार्य पूर्ण। जा कै रिदै वसै हरि नाम।।2।। सगल सुख आनंद आरोग। समदरसि पुरान निर्जोग ऐ न जाई डोलै काट नहिं॥ जा कै नामु बसै मन माही।3। दीन दयाल जी पाल गोविंद। गुरुमुखी जेपीए उतराई छिंद. नानक गुरु का नाम कहो। संतन की तहल संत का कामू।4।15।26।

 

रामकली महल 5 कोटि जाप तप विसराम रिद्धि बुद्धि सिद्धि सुर ज्ञान अनिक रूप भोग रसाई॥ गुरुमुखी नामु निमख रिदै वसई ॥1॥ हरि नाम के दादा कीमत नहीं बताई जा सकती.1. रहना सुरबीर धीरज सम्पूर्ण सहज समाधि धुन, गहरी और गंभीर। सदा मुक्तु ता के सम्पूर्ण कार्य जा कै रिदै वसै हरि नाम॥2॥ सगल सूखा आनंद आरोग॥ समदरसि पुरान निर्जोग मत जाओ दोलाई काट नहीं जा कै नामु बसै मन माहीं॥3॥ दीन दयाल गोपाल गोविंद गुरुमुखी जपियै उतरै छिंद नानक कौ गुरि दिया नामु। संतन की तहल संत का कामु॥4॥15॥26॥

 

अर्थ : कोटि = करोड़। जप = देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप करना। गर्मी = धुएँ आदि से शरीर को कष्ट पहुँचाना। रिद्धि सिद्धि = जादुई शक्तियां। सूर ज्ञान = देवताओं की बुद्धि = बुद्धि। रसै = रस का आनंद लेता है। गुरुमुखी = गुरु की शरण लेना। निमख = {निमेष} जब तक आँख खुलती है। रिदय=हृदय में।1।

 

महिमा = महत्व 1. रहना । सूर बीर = बहादुर, साहसी। सहज = मानसिक स्थिरता। धूनी = लगन। गेहर = गहरा, गहरा। मुक्तु = विकारों से मुक्त। ता के = उसका (आदमी)। काम = काम। जा कै रिदै = जिसके हृदय में।2। सगल = सभी। आरोग = रोगमुक्त। समदर्शी = सबको समान दृष्टि से देखने वाला। सम = बराबर। दरसी = द्रष्टा। निर्जोग = निर्लिप्त। कैट=कहीं भी।3. गपाल = {अक्षर ‘जी’ में दो व्यंजन हैं – उ और उ। मूल शब्द ‘गोपाल’ है, यहां ‘गुपाल’ पढ़ें}। जपा = का जाप करना चाहिए। चिन्द = चिन्ता, चिन्ता। गुरी = गुरु.14.

 

भावार्थ: (हे भाई!) भगवान के नाम का महत्व बताया नहीं जा सकता, हरि-नाम का मूल्य पाया नहीं जा सकता। 1. ठहरो। (हे भाई!) गुरु के माध्यम से, (जिस मनुष्य के) हृदय में हरि-नाम तब तक रहता है जब तक आंखें देख सकती हैं, वह (लगता है) कई प्रकार के रंगों और नकल पदार्थों के रस का आनंद लेता है। वह मनुष्य दिव्य बुद्धिमान हो जाता है, उसकी बुद्धि (उन्नत हो जाती है), वह (ऋद्धि-सिद्धियों का स्वामी बन जाता है); (करोड़ों जप तप का फल) उसके भीतर रहता है।।1।। (हे भाई!) जिस मनुष्य के हृदय में भगवान का नाम रहता है, वह योद्धा (बुराइयों के विरुद्ध) होता है, वह बहादुर होता है, वह पूर्ण बुद्धि और धैर्य का स्वामी बन जाता है, वह हमेशा आध्यात्मिक स्थिरता में, भगवान में रहता है। उसकी गहरी दृढ़ता बनी रहती है, वह सदैव विकारों से मुक्त रहता है, उसके सभी कार्य सफल होते हैं।2. (हे भाई!) जिसके मन में हरि-नाम रहता है, वह कहीं नहीं भटकता, वह कहीं नहीं डगमगाता, (वह) माया के प्रभाव से पूरी तरह से अलग हो जाता है, वह सबमें भगवान का प्रकाश देखता है, वह वह सभी सुखों को भोगता है, (मानसिक) रोगों से मुक्त रहता है। (हे भाई!) गुरु की शरण में जाकर भक्तों पर दया करने वाले गोपाल गोविंद का नाम जपना चाहिए, (जो व्यक्ति जप करता है उसकी) चिंताएं दूर हो जाती हैं। (हे भाई! मेरे लिए) नानक को गुरु ने भगवान के नाम का आशीर्वाद दिया है, संतों का उपहार दिया है। (हरि-नाम का ध्यान) गुरु का (सिखाया हुआ) कार्य है। 4.15.26।

अर्थ: हे भाई, भगवान के नाम का महत्व बताया नहीं जा सकता, हरि के नाम का मूल्य आंका नहीं जा सकता। रहना (हे भाई) गुरु द्वारा, (उस आदमी के) हृदय में, जब तक पलक झपकती है, तब तक हरि का नाम रहता है, मानो वह कई रूपों और रंगों में हो, वह माया में रमण करता है। उसकी बुद्धि उच्च हो जाती है और वह ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी बन जाता है। जिस मनुष्य के हृदय में भगवान का नाम रहता है, वह साहसी और वीर होता है (सभी बुराइयों के खिलाफ), वह पूर्ण बुद्धि और सहनशक्ति का स्वामी बन जाता है, वह हमेशा आध्यात्मिक दृढ़ता में रहता है, भगवान के प्रति उसकी गहरी भक्ति होती है। वह सदैव विकारों से मुक्त रहता है, उसके सभी कार्य सफल होते हैं। 2. जिस मनुष्य के मन में हरि का नाम रहता है, वह कहीं भी विचलित नहीं होता, कहीं भटकता नहीं, वह सदैव माया के प्रभाव से मुक्त रहता है, वह हर चीज में भगवान का रूप देखता है, वह सभी सुखों और सुखों का आनंद लेता है। वह मानसिक रोगों से मुक्त रहता है।बचें (हे भाई गुरु गुरु की शरण में आकर दिन लूंग पाक करने वाले उड़स परमात्मा करने नाम सुमिरन का नाम कर्मात्मा। (हे भाई) (गुरु नानक जी कहते हैं) नानक गुरु ने प्रभु का दिया है संत जनन की सेवा की दत बख्शी है, हरि का नाम सिमरन है गुरु का तैना हुआ है।4.15.26।

 

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